Tuesday, March 8, 2016


बका तरफ कोई न जानत, पढे ढूंढ ढूंढ हुए हैरान ।
सो बका हदें सब बेवरा किया, जो दिल मोमिन अरस सुभान ।।

अदुैत का आनंद कोई नही जान पाया कयोंकी सबके जीव की दृष्टि दूैत के आनंद की खोज में लग कर जन्म जन्मों से दूैत में ही उल्झी हूई है गलती जीवों की भी नही है कयोंकी इन्होने अदुैत न देखा है न सुना है ये तो अपने भगवान को भी दूैत भाव से ही प्रेम करते हैं और इनके भगवान भी दूैत भाव में ही रहते हैं ..इसलिय ये वेद आदी में अदूैत की इशारतो पढ पढ कर हैरान हुए रहते हैं व उनके अलग अलग भाष्य करते हैं ..परन्तू जिन आत्माओं के हृदय में अदुैत परमात्मा रहते है वे अदुैत की गहनता को समझकर सदा इसी में रमते हैं इसलिय ये सब ग्रन्थो के अदुैत भाव को बडी सरलता से ग्रहण कर लेते है इन्है अदुैत और दुैत के आनंद का सार पता होता है इसलिस इनके भाव जीवो के लिय गहन व असहज होते हैं...

प्रणाम जी

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