ए तुम ताले तो आइया, जो तुम असल खिलवत।
निसदिन सहूर एही चाहिए, हक बैठे तुमें खेलावत।।
(33/1 सागर)
हे बृह्म आत्माओं ये जीवो के लिय इस ब्रह्मज्ञाानका अवतरण इसी कारण हुआ है कि तुम्हारा सम्बन्ध मूलमिलावा (*अद्वैत परमात्मा के हृदय रूपी परमधाम से तुम्हारे लिय अदूैत व अन्नत प्रेम का मूल सत्रोत जिसे शब्द रूप मे मूलमिलावा कहते है * ) से है. ये ब्रह्मज्ञाान शब्द जीवें के लिय है जो सदा से दूैत के अलावा कुछ नही जान्ते उनके लिय सत्य अखंड व अन्नत अदूैत आनंद से सबंधित विषय ब्रह्मज्ञाान है और ये केवल उनहे इस कारण मिला है कयोंकी ये तुम्हारे विषय तुम्हारे जाग्रती के कारज हेतू तुम्हारे सेवन के लिय याहां लाया गया है. इसलिए तुम दूैत विषय को त्याग कर अर्हिनश वहां से आई इस अदूैत की औषधी का मंथन करके सेवन करते रहो. वह अद्वैत परमात्मा अपने हृदय रूपी परमधाम मे निरंतर बह रहे तुम्हारे लिय अदूैत व अन्नत प्रेम के मूल सत्रोत मे तुम्हे पूरी तरह डुबो कर तुम्हें यह खेल दिखा रहे हैं.
तुम इस तथ्य को गहन्ता से ग्रहण करके शिघ्रता से उनके साथ अपने संबंध को अदूैत भाव में लाने का यत्न करें..
प्रणाम जी
निसदिन सहूर एही चाहिए, हक बैठे तुमें खेलावत।।
(33/1 सागर)
हे बृह्म आत्माओं ये जीवो के लिय इस ब्रह्मज्ञाानका अवतरण इसी कारण हुआ है कि तुम्हारा सम्बन्ध मूलमिलावा (*अद्वैत परमात्मा के हृदय रूपी परमधाम से तुम्हारे लिय अदूैत व अन्नत प्रेम का मूल सत्रोत जिसे शब्द रूप मे मूलमिलावा कहते है * ) से है. ये ब्रह्मज्ञाान शब्द जीवें के लिय है जो सदा से दूैत के अलावा कुछ नही जान्ते उनके लिय सत्य अखंड व अन्नत अदूैत आनंद से सबंधित विषय ब्रह्मज्ञाान है और ये केवल उनहे इस कारण मिला है कयोंकी ये तुम्हारे विषय तुम्हारे जाग्रती के कारज हेतू तुम्हारे सेवन के लिय याहां लाया गया है. इसलिए तुम दूैत विषय को त्याग कर अर्हिनश वहां से आई इस अदूैत की औषधी का मंथन करके सेवन करते रहो. वह अद्वैत परमात्मा अपने हृदय रूपी परमधाम मे निरंतर बह रहे तुम्हारे लिय अदूैत व अन्नत प्रेम के मूल सत्रोत मे तुम्हे पूरी तरह डुबो कर तुम्हें यह खेल दिखा रहे हैं.
तुम इस तथ्य को गहन्ता से ग्रहण करके शिघ्रता से उनके साथ अपने संबंध को अदूैत भाव में लाने का यत्न करें..
प्रणाम जी
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