Sunday, March 20, 2016


भी राखों बीच नैन के, और नैनों बीच दिल नैन।
भी राखों रूहके नैनमें, ज्यों रूह पावें सुख चैन।।

आत्मा परमात्मा से कह रही है की..
में आपको अपने नैनो में बसा के रखूं ताकी मैं आपके अलावा किसी अन्य वस्तु को ना देख पाऊं और इन नैनों मे अपने दिल के नैन भी मिला दूं जिस कारण मेरे हृदय में जो भी जाय वो आपके माध्यम से ही जाय या हृदय से जो भी आय मेरे नयनों मे आपतक आये..और मैं आपको अपनी आत्मा के नयन में रख लूं . जिस से मुझे सुख व चैन मिल सके....
याहां ये प्रश्न उत्पन्न हो सकता है की जब आतमां पहले ही अपने नयनों में बसाने की बात कह चुकी है तो ये आत्मा के रूहके नयन कोन से हैं..?

खुलासा- परमधाम में आत्मा अन्नत माध्यम से अन्नत आनंद का रस पान करती है याहां इन चौपाइयों में संकेत में उसी अदूैत का रहस्य बताया है की वहां एक तो आत्मांऔ के अन्नत सौन्द्रय वाले वो प्रत्यक्ष नयन हैं जो अपलक परमात्मा के आनंद का रस ग्रहण करते रहते हैं .
दूसरा पूरा प्रमधाम सब आत्माओ के हृदय मे विद्यमान है इसलिय परमधाम में जो भी होता है वो सब आत्माओ के हृदय में एक साथ अनुभव होता है ये अदूैत भाव का कारण है और हृदय में जब ये दृष्यमान होता है तो उस दृष्यमान होने के भाव को ही हृदय के नयन कहा है .
तीसरा वहा आत्मा का पूरा नूरी तन अन्नत ओर पूर्ण आनंद ग्रहण करने का माध्यम है नूरी तन पूर्ण होते हैं अर्थात वो उनका हर अंग पूर्ण है हर अंग देख सकता है . हर अंग सुन सकता है अर्थात हर अंग से अन्नत आनंद मिलता है इसलिय वहा रूह का पूरा नूरी तन नयन का कार्य भी करता है इसी को रूह के नयन कहा गया है...इसी कारण रूह वहा अन्नत आनंद निरंतर लेती है इसी को याहां की भाषा में सुख चैन कहा है...

प्रणाम जी

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