बुध तुरिया दृष्ट श्रवना , जेती गम वचन ।
उतपन सब होसी फना , जो लो पोहोंचे मन ।। (श्रीमुख वाणी- कि. २७/१६)
बुद्धि, चित्त, मन, दृष्टि, श्रवण और वाणी की पहुँच से वह परब्रह्म परमात्मा सर्वथा परे हैं । यह उत्पन्न होने वाला सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही नश्वर अर्थात परिवर्तनशील है । इसलिए यहाँ की किसी भी वस्तु से उस परम तत्व को कहा नहीं जा सकता है । ना ही उसकी व्याख्या की जा सकती है...इसलिय इस नशवर को माध्यम बनाना व्यर्थ है. तो फिर वो मिले कैसे ?
केवल यह चेतन जीव अपने स्वरूप को जानकर शुद्ध चेतन आत्मा के माध्यम से परमात्मा को जान सकता है..इसमें गहन रूप में परमात्मा की कृपा छिपी रहती है..
इसलिय उस परमात्मा को इस ब्रह्माण्ड की किसी भी बाह्य नश्वर या परिवर्तनशील वस्तु से नही जाना जा सकता..चाहे वह मूर्ती हो, मंदिर हो, किसी संत का समारक हो, किसी धार्मिक स्थान की परिक्रमा या अन्य कोई भी बाह्य साधन हो..
प्रणाम जी
उतपन सब होसी फना , जो लो पोहोंचे मन ।। (श्रीमुख वाणी- कि. २७/१६)
बुद्धि, चित्त, मन, दृष्टि, श्रवण और वाणी की पहुँच से वह परब्रह्म परमात्मा सर्वथा परे हैं । यह उत्पन्न होने वाला सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही नश्वर अर्थात परिवर्तनशील है । इसलिए यहाँ की किसी भी वस्तु से उस परम तत्व को कहा नहीं जा सकता है । ना ही उसकी व्याख्या की जा सकती है...इसलिय इस नशवर को माध्यम बनाना व्यर्थ है. तो फिर वो मिले कैसे ?
केवल यह चेतन जीव अपने स्वरूप को जानकर शुद्ध चेतन आत्मा के माध्यम से परमात्मा को जान सकता है..इसमें गहन रूप में परमात्मा की कृपा छिपी रहती है..
इसलिय उस परमात्मा को इस ब्रह्माण्ड की किसी भी बाह्य नश्वर या परिवर्तनशील वस्तु से नही जाना जा सकता..चाहे वह मूर्ती हो, मंदिर हो, किसी संत का समारक हो, किसी धार्मिक स्थान की परिक्रमा या अन्य कोई भी बाह्य साधन हो..
प्रणाम जी
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