Saturday, March 26, 2016

निरत भूखन बाजे गान, देखो ठोर सैंयां सब समान |
इन लीला में आयो चित , छोड्यो जाये न काहूं कित |

 परमधाम के आनंद का विवरण शब्दातीत है कयोंकी वो नृत्य नही अपीतु आनंद का अनंत रूप है..परमधाम में स्व: लीला अदुैत अर्थात पूर्ण आनंद का नृत्ये होता है .इसको समझने के लिए अदुैत की दृष्टि होनी आवयश्क है. वहां जब कोई आत्मा नृत्ये करती है तो उसको अदुैत के शरीर जैसा नृत्ये नही समझा जा सकता ..जब वहां परमात्मा के सामने आत्मा नृत्ये करती है तो उसके आनंद रूपी पांवो से आनंद की जमीं पर थाप पड़ने से आनंद की अनेक लहरें उठती है ये आनंद की लहरे चेतन होती है ये सभी आत्मओं को आनंद में ओतप्रोत करती हुई आनंद की चौथी भूमिका की सभी आनंद रूपी  दीवारों को श्पर्श करती है तो उनपर बनी हुई बेल व् नक्काशियां चेतना व् आनंद से ओत प्रोत होकर आनंद से नृत्ये करती हुई उस अनंत आनंद को प्राव्रतित कर देती है जिस कारण वो आनंद और अधिक मात्रा में बढ़ कर तेजी से अनंत की और फ़ैल जाता है
और उसी आनंद की लहरों में आनंद से बने सब  पेड़ ,फुल, पशु ,पक्षी, जमुना, मानिक, बाग आदि अनंत आनंद रूपी धाम की सब जगह जो पहले से आनंद
स्वरुप व् पूर्ण आनंदित है उनमे आनंद की लहरें पहले से उपस्थित आनंद के साथ आनंद की क्रिया करके उनके आनंद को भी नृत्य में प्रवर्तित कर देती है
 जिस से सब में आनंद का वो नृत्ये द्रिश्येमान होने लगता है इस प्रकार पूरा परमधाम आनंद का नृत्य स्वरूप दिखाइ पडता है... आनंद की अनंत मात्रा होने के कारण आनंद बढ़ कर बाहर निकल कर मूल से मूल में होता हुआ  पूनः उसी नृत्ये शाला में पहुंच कर आनंद की अनेक प्रकाश किरणों में प्रवर्तित होकर पुरे माहोल को अनंत आनंद से भर देता है फिर वही आनंद पुन: नृत्ये का रूप लेकर पूनः इसी क्रिया दूरा बहार जाकर अनंत गुना होकर पुन: नृत्ये का रूप लेता रहता है इस प्रकार यह शब्दों से व् व्याख्या से अनंत गुणा अधिक हो जाता है जिसकी व्याख्या नही की जा सकती ...इस प्रकार की अदुैत  की लीला का बोध होने बाद इस लीला से चित को केसे हटाया जा सकता है ..

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment