सुप्रभात जी
हे मेरी आत्मा ! पल भर में ही लीन हो जाने वाले इस संसार रूपी नाटक को तू सावधानी से देख। इस सम्बन्ध में अब तू क्या सोच रही है ? परमात्मा को पाने के लिये तुम एक पल के चौथाई हिस्से में ही इस ब्रह्माण्ड और निराकार को पार कर लो। निराकार से परे उस अनन्त आनंद रूपी परमधाम में परमात्मा विराजमान हैं। वहां तक पहुंचने के मार्ग में अब कोई भी बाधा नहीं है। तू तो बिना पैरों के ही अपनी मंजिल पूरी कर लेगी अर्थात् नवधा भक्ति और कर्मकाण्ड की राह छोड़कर इश्क-ईमान के पंखों से पक्षी की भांती उड कर उस आनंद तक पहुंच जायेगी। परमधाम कोई सथान विशेष नही है अपितू अपने परमातमा तत्व का ही अन्नत विस्तार रूप में अन्नत प्रेम और आनन्द का स्थान है। वहां के त्रिगुणातीत अनन्त सुख को शब्दों में कैसे कहा जाये ? वहां के सुख की अनुभूति होते ही माया की सारी इच्छायें समाप्त हो जाती हैं वो भी याहां रहते रहते इसी को मनिषी लोग भगवत प्राप्ति कहते हैं।
प्रणाम जी
हे मेरी आत्मा ! पल भर में ही लीन हो जाने वाले इस संसार रूपी नाटक को तू सावधानी से देख। इस सम्बन्ध में अब तू क्या सोच रही है ? परमात्मा को पाने के लिये तुम एक पल के चौथाई हिस्से में ही इस ब्रह्माण्ड और निराकार को पार कर लो। निराकार से परे उस अनन्त आनंद रूपी परमधाम में परमात्मा विराजमान हैं। वहां तक पहुंचने के मार्ग में अब कोई भी बाधा नहीं है। तू तो बिना पैरों के ही अपनी मंजिल पूरी कर लेगी अर्थात् नवधा भक्ति और कर्मकाण्ड की राह छोड़कर इश्क-ईमान के पंखों से पक्षी की भांती उड कर उस आनंद तक पहुंच जायेगी। परमधाम कोई सथान विशेष नही है अपितू अपने परमातमा तत्व का ही अन्नत विस्तार रूप में अन्नत प्रेम और आनन्द का स्थान है। वहां के त्रिगुणातीत अनन्त सुख को शब्दों में कैसे कहा जाये ? वहां के सुख की अनुभूति होते ही माया की सारी इच्छायें समाप्त हो जाती हैं वो भी याहां रहते रहते इसी को मनिषी लोग भगवत प्राप्ति कहते हैं।
प्रणाम जी
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