Tuesday, September 1, 2015




तुमने लोक-लज्जा तथा कर्मकाण्ड की मर्यादाओं को छोड़कर ज्ञानी कहलाने की शोभा पाई है । गृहस्थी की छोटी आग को तो तुमने बुझा दिया, किन्तु महन्ती और ज्ञानी होने का अहंकार इन बड़ी आग को गले से लिपटा लिया । गृहस्थ जीवन में सामाजिक मर्यादाओं तथा धर्म के नाम पर होने वाले कर्मकाण्डों का पालन करना पड़ता है । सच्चा विरक्त एवं ज्ञानी वही है जो इन सबका परित्याग कर दे । महन्त बनने के बाद सांसारिक प्रतिष्ठा एवं शिष्यों की संख्या बढ़ाने का मोह और अधिक बढ़ जाता है, जो गृहस्थी की जिम्मेदारियों से भी अधिक बन्धन वाला होता है । इसे ही बड़ी आग कहा गया है ।

प्रणाम जी 

No comments:

Post a Comment