ए नजर तुमें तब खुले, जो पूरन करें हक मेहेर।
तो एक हक के इस्क बिना, और देखो सब जेहेर।।
आपकी आत्मिक दृष्टि तभी खुलेगी, जब आप पर परमात्मा की पूर्ण मेहर हो। आत्मिक दृष्टि खुल जाने पर आपको परमात्मा के प्रेम के अतिरिक्त सारा विश्व विष के समान कष्टकारी लगने लगेगा।
यद्यपि परमधाम में अदुेतभाव अवश्य है, किन्तु इस संसार में ’करनी माफक कृपा’ के अनुसार किसी को ज्ञान मिलता है तो किसी को प्रेम। इसी प्रकार किसी पर मात्र बाह्य कृपा होती है तो किसी पर आन्तरिक। किसी-किसी पर दोनों ही होती है...
प्रणाम जी
तो एक हक के इस्क बिना, और देखो सब जेहेर।।
आपकी आत्मिक दृष्टि तभी खुलेगी, जब आप पर परमात्मा की पूर्ण मेहर हो। आत्मिक दृष्टि खुल जाने पर आपको परमात्मा के प्रेम के अतिरिक्त सारा विश्व विष के समान कष्टकारी लगने लगेगा।
यद्यपि परमधाम में अदुेतभाव अवश्य है, किन्तु इस संसार में ’करनी माफक कृपा’ के अनुसार किसी को ज्ञान मिलता है तो किसी को प्रेम। इसी प्रकार किसी पर मात्र बाह्य कृपा होती है तो किसी पर आन्तरिक। किसी-किसी पर दोनों ही होती है...
प्रणाम जी
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