सुप्रभात जी
प्रश्न :मैंने बहुत सारा आध्यात्मिक साहित्य पढ़ रखा है ,मुझे पूछने हेतु कोई प्रश्न ,संशय ,जिज्ञासा भी नहीं है .किन्तु साधना ,ध्यान आदि में प्रगति नहीं हो रही है ,बौद्धिक ज्ञान होने के बाद भी कोई स्थिति नहीं बन रही है.,परिवर्तन,शांति ,आनंद ,प्रेम का आभाव है.
उत्तर : बुद्धि से अध्यात्म को समझ लेना आसान है ,क्योंकि आज का व्यक्ति बुद्धि प्रधान है.अध्यात्म का सम्बन्ध 'साधना ' से है.
किन्तु 'ध्यान साधना ' में तब तक प्रगति नहीं हो सकती ,जब तक वैराग्य नहो .
जब तक संसार के प्रति सत्यत्व बुद्धि है ,तब तक परमात्मा में ,आत्मा में सत्यत्व बुद्धि नहीं हो सकती है.
संसार भी सत्य लग रहा है और परमात्मा भी ,यह नहीं हो सकता है .जब तो संसार की कोई भी मांग है ,चाह है ,परमात्मा
नहीं मिलेगा .इसलिए गीता में कहा है कि -"अभ्यास और वैराग्य " से उसे पाया जाता है.ब्रह्म सत्य ,जगत मिथ्या .
एक दिन मृत्यु आना है ,तो मानसिक रूप से अभी क्यों न मर जाएँ .संसार के प्रति मरना होगा.तभी 'वह ' मिलेगा.
जगत का मन से त्याग कर दें .तभी आध्यात्मिक उन्नति होगी .
प्रणाम जी
प्रश्न :मैंने बहुत सारा आध्यात्मिक साहित्य पढ़ रखा है ,मुझे पूछने हेतु कोई प्रश्न ,संशय ,जिज्ञासा भी नहीं है .किन्तु साधना ,ध्यान आदि में प्रगति नहीं हो रही है ,बौद्धिक ज्ञान होने के बाद भी कोई स्थिति नहीं बन रही है.,परिवर्तन,शांति ,आनंद ,प्रेम का आभाव है.
उत्तर : बुद्धि से अध्यात्म को समझ लेना आसान है ,क्योंकि आज का व्यक्ति बुद्धि प्रधान है.अध्यात्म का सम्बन्ध 'साधना ' से है.
किन्तु 'ध्यान साधना ' में तब तक प्रगति नहीं हो सकती ,जब तक वैराग्य नहो .
जब तक संसार के प्रति सत्यत्व बुद्धि है ,तब तक परमात्मा में ,आत्मा में सत्यत्व बुद्धि नहीं हो सकती है.
संसार भी सत्य लग रहा है और परमात्मा भी ,यह नहीं हो सकता है .जब तो संसार की कोई भी मांग है ,चाह है ,परमात्मा
नहीं मिलेगा .इसलिए गीता में कहा है कि -"अभ्यास और वैराग्य " से उसे पाया जाता है.ब्रह्म सत्य ,जगत मिथ्या .
एक दिन मृत्यु आना है ,तो मानसिक रूप से अभी क्यों न मर जाएँ .संसार के प्रति मरना होगा.तभी 'वह ' मिलेगा.
जगत का मन से त्याग कर दें .तभी आध्यात्मिक उन्नति होगी .
प्रणाम जी
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