Wednesday, September 16, 2015

विवेक धारण



मिथ्या में सत्य को जान लेना, नश्वर में शाश्वत को खोज लेना, आत्मा को पहचान लेना तथा आत्मामय होकर जीना यही विवेक है । इसके अतिरिक्त अन्य सभी मजदूरी है, व्यर्थ बोझा उठाना और अपने आपको मूढ़ सिद्ध करने जैसा है । ऎसा विवेक धारण कर अपने आपको      आध्यात्मिक मार्ग पर चला दें तो सभी कुछ उचित हो जाये, जीवन सार्थक हो जाये । अन्यथा कितने ही गद्दी-तकियों पर बैठिए, अथवा जनता के सम्मुख ऊँचे मंच पर बैठकर अपनी नश्वर देह और नाम की जयजयकार करवा लीजिए परंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगेगा ।
आप जहाँ के तहाँ ही रह जायेंगे । आयु बीत जायेगी और पछतावे का पार न रहेगा । जब मौत आयेगी तब जीवन भर कमाया हुआ धन, परिश्रम करके पाये हुए पद-प्रतिष्ठा, लाड़ से पाला-पोसा यह शरीर निर्दयतापूर्वक साथ छोड़ देगा । आप खाली हाथ रोते रहेंगे, बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में घूमते रहेंगे । इसीलिए केनोपनिषद के ऋषि कहते हैं :

इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति ।
न चेदिहावेदीन महती विनष्टिः ॥

’यदि इस जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया या परमात्मा को जान लिया, तब तो जीवन की सार्थकता है और यदि इस जीवन में परमात्मा को नहीं जाना तो महान विनाश है ।’ (केनोपनिषद : २.५)
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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