हकें अर्स किया दिल मोमिन, ए मता आया हक दिल से।
हकें दिल दिया किया लिख्या, हाए हाए मोमिन डूब न मुए इनमें।।
श्री परमात्मा ने ब्रह्मसृष्टियों के हृदय को अपना धाम बनाया है। तारतम का यह सम्पूर्ण ज्ञान भी परमात्मा के दिल से ही मेरे दिल (हृदय) में आया है।सभी धर्म ग्रन्थों में परमात्मा ने कहलाया है कि मैंने अपनी अंगनाओं को अपना दिल दे दिया है और उनके हृदय को अपना धाम बनाकर उसमें विराजमान हो गया हूं। फिर भी हम परमात्मा को बाहर ढूंड रहे है..
परब्रह्म के प्रेम के सम्बन्ध में ऋग्वेद 8/92/32 में इस प्रकार का वर्णन है- "वयं तव, त्वम् अस्माकम्" अर्थात् हे परब्रह्म !’’ हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे हो।
इसी प्रकार कुरआन-हदीस में "क़ल्ब-ए-मोमिन अर्श अल्लाह’’ कहा गया है, जिसका अर्थ है "ब्रह्ममुनि का हृदय ही परब्रह्म का निवास स्थल है।"
अपना दिल देने के सम्बन्ध में क0 हि0 1/5 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि-
मासूकें मोहे मिलके, करी सो दिल दे गुझ।
कहे तूं दे पड़ उत्तर, जो मैं पूछत हो तुझ।।
इसी प्रकार ‘’ परमात्मा ने आत्मांओ को अपना प्राण प्रियतम भी कहा है’’-
प्रीतम मेरे प्राण के, अंगना आतम नूर।
मन कलपे खेल देखते, सो ए दुख करूं सब दूर।। क0 हि0 23/17
‘’यह आत्म चिन्तन की घड़ी है कि अक्षरातीत हमसे कितना प्रेम करते हैं और प्रत्युत्तर में हम उनसे कितना प्रेम करते हैं,’’ सम्भवत: हमारे लिये यह स्थिति लज्जा से डूब मरने वाली है। की हम परमात्मा को अपने हृदय से अलग कहीं ढूंड रहे हैं...
प्रणाम जी
हकें दिल दिया किया लिख्या, हाए हाए मोमिन डूब न मुए इनमें।।
श्री परमात्मा ने ब्रह्मसृष्टियों के हृदय को अपना धाम बनाया है। तारतम का यह सम्पूर्ण ज्ञान भी परमात्मा के दिल से ही मेरे दिल (हृदय) में आया है।सभी धर्म ग्रन्थों में परमात्मा ने कहलाया है कि मैंने अपनी अंगनाओं को अपना दिल दे दिया है और उनके हृदय को अपना धाम बनाकर उसमें विराजमान हो गया हूं। फिर भी हम परमात्मा को बाहर ढूंड रहे है..
परब्रह्म के प्रेम के सम्बन्ध में ऋग्वेद 8/92/32 में इस प्रकार का वर्णन है- "वयं तव, त्वम् अस्माकम्" अर्थात् हे परब्रह्म !’’ हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे हो।
इसी प्रकार कुरआन-हदीस में "क़ल्ब-ए-मोमिन अर्श अल्लाह’’ कहा गया है, जिसका अर्थ है "ब्रह्ममुनि का हृदय ही परब्रह्म का निवास स्थल है।"
अपना दिल देने के सम्बन्ध में क0 हि0 1/5 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि-
मासूकें मोहे मिलके, करी सो दिल दे गुझ।
कहे तूं दे पड़ उत्तर, जो मैं पूछत हो तुझ।।
इसी प्रकार ‘’ परमात्मा ने आत्मांओ को अपना प्राण प्रियतम भी कहा है’’-
प्रीतम मेरे प्राण के, अंगना आतम नूर।
मन कलपे खेल देखते, सो ए दुख करूं सब दूर।। क0 हि0 23/17
‘’यह आत्म चिन्तन की घड़ी है कि अक्षरातीत हमसे कितना प्रेम करते हैं और प्रत्युत्तर में हम उनसे कितना प्रेम करते हैं,’’ सम्भवत: हमारे लिये यह स्थिति लज्जा से डूब मरने वाली है। की हम परमात्मा को अपने हृदय से अलग कहीं ढूंड रहे हैं...
प्रणाम जी
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