Monday, September 7, 2015


दिल अरस मोमिन कह्या, जामें अमरद सूरत।
छिन ना छूटे मोमिनसे, मेहेबूब की मूरत।।

ब्रह्मात्माओंके हृदयको ही परमधाम कहा गया है. क्योंकि उसमें नूरी स्वरूप परब्रह्म परमात्मा विराजमान हैं वे परमात्मा के स्वरूप को मुरदार दुनीया से भिन्न जान जाती है . इसलिए ब्रह्मात्माओंके हृदयसे क्षण मात्रके लिए भी प्यारे परमात्माका स्वरूप दूर नहीं होता...

प्रणाम जी

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