Saturday, September 12, 2015

प्रेम

तारतम वाणी के प्रकाश में अपनी 'मैं’ का परित्याग करके जो परमात्मा को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और उनके प्रेम में डूब जाता है, उसके धाम हृदय में अक्षरातीत की शोभा अखण्ड रूप से विराजमान हो जाती है।
इन ब्रह्मसृष्टियों का मूल स्वभाव प्रेम से भरपूर होता है। ये परमात्मा को अपने प्रेम से रिझाने के लिये अवसर खोजा करती हैं। इनके अन्दर प्रेम के अतिरिक्त और कुछ होता ही नहीं है।
परमधाम में इन ब्रह्मसृष्टियों के द्वारा किसी बात को सुनने में भी प्रेम भरा होता है। जब ये अपने मुख से कुछ कहती हैं तो उसमें भी प्रेम का रस टपकता है।

प्रणाम जी

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