Monday, September 21, 2015

मैं शुद्धात्मा हूँ

सुप्रभात जी

व्यासदेव यमुना पार कर रहे थे। वहाँ गोपियाँ भी थीं। वे भी पार जाना चाहती थीं, दही, दूध, मक्खन बेचने के लिए। वहाँ नाव न थी। सब सोचने लगे, कैसे पार जाएँ। इसी समय व्यासदेव ने कहा, ‘मुझे बड़ी भूख लगी है।’ तब गोपियाँ उन्हें दही, दूध, मक्खन, रबड़ी सब खिलाने लगीं। व्यासदेव लगभग सब साफ कर गए। फिर व्यासदेव ने यमुना से कहा, ‘यमुने, अगर मैंने कुछ भी न खाया हो, तो तुम्हारा जल दो भागों में बँट जाए। बीच से राह हो जाए और हम लोग निकल जाएँ।’ ऐसा ही हुआ। यमुना के दो भाग हो गए। उस पर जाने की राह बीच से बन गई। इसी रास्ते से गोपियों के साथ व्यासदेव पार हो गए’’  ‘‘मैंने नहीं खाया, इसका अर्थ यही है कि मैं वही शुद्धात्मा हूँ। शुद्धात्मा निर्लिप्त है, प्रकृति के परे है। उसे न भूख है, न प्यास। न जन्म है, न मृत्यु। वह अजर, अमर और सुमेरुवत है। जिसे यह ज्ञान हुआ, ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई, वही जीवनमुक्त है। वह ठीक समझता है कि आत्मा अलग है, देह अलग। परमात्मा के का बोध होने पर देहात्म बुद्धि नहीं रह जाती।’’
Satsangwithparveen.blogspot.com
(पृष्ठ ५३-५४, रामकृष्ण वचनामृत, तृतीय)

प्रणाम जी

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