Wednesday, September 23, 2015

वाणी

सुख हक इस्क के, जिनको नाहीं सुमार।
सो देखन की ठौर इत है, जो रूह सों करो विचार।।

परमधाम में अक्षरातीत के प्रेम का अनन्त आनन्द है, किन्तु हे साथ जी ! यदि आप अपनी आत्मिक दृष्टि से विचार करें तो उन सुखों की पहचान इस जागनी ब्रह्माण्ड में ही होनी है।
परमधाम में नूरी तनों से प्रेम और आनन्द का विलास है, किन्तु इस जागनी ब्रह्माण्ड में तारतम वाणी के प्रकाश में हम अपने ज्ञान चक्षुओं से इश्क और आनन्द की मारिफत को जान सकते हैं। प्रेममयी चितवनि द्वारा अष्ट प्रहर की लीला सहित सम्पूर्ण पक्षों का साक्षात्कार भी कर सकते हैं और उस अवस्था की प्राप्ति कर सकते हैं जिसमें आत्मा और परात्म में भेद नहीं रह जाता...

प्रणाम जी

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