सुप्रभात जी
प्रश्न : ध्यान का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर : ध्यान का उद्देश्य एक ऐसे 'आनंद ' की प्राप्ति है ,जो कभी नष्ट न होता है ,जो हमारा आत्म स्वभाव है .
'आनंद' की प्राप्ति में दुखों का नाश छिपा हुआ है अर्थात दुखों की आत्यंतिक निवृति होना .
'आनंद ' हमारा स्वभाव है ,स्वरूप है .आत्मा आनंद स्वरूप है .
सुख-दुःख मन के अंतर्गत हैं ,आनंद और आत्मा मन के परे हैं .
अतः मन की किसी क्रिया द्वारा आत्मा के आनंद को नहीं पाया जा सकता है.
ध्यान मन का अतिक्रमण है ,ध्यान मन से मुक्ति है ताकि मन के अतीत आत्मा के आनंद को पाया जा सके .
ध्यान मन की कोई क्रिया नहीं है ,अपितु मन की अक्रिय अवस्था को ध्यान कहते है .मन की अक्रिय जागरूक अवस्था ध्यान
है .satsangwithparveen.blogspot.com
एकाग्रता ,पूजा -पाठ ,मंत्र जाप ,त्राटक ,चक्र व कुण्डिलिनी जागरण ये सभी ध्यान नहीं है ,ये सभी मन की क्रियाएँ हैं.
मन की क्रिया द्वारा मन का अतिक्रमण संभव नहीं है .क्योंकि प्रत्येक मन की क्रिया में मन व अहम उपस्थित रहेगा .
जब मन की कोई क्रिया नहीं है अर्थात आप कुछ नहीं कर रहे है सिर्फ जागरूक हैं ,साक्षी है ,विश्रांत हैं ,मात्र होनापन है
यह है 'ध्यान '.आप न तो एकाग्रता कर रहे है ,न मंत्र जाप कर रहे हैं ,न त्राटक,न पूजा पाठ ,न चक्र या कुण्डिलिनी जागरण
आप मात्र मन के साक्षी हैं ,दृष्टा है ,मात्र "आप हैं " -यह है ध्यान . ध्यान का आपका स्वरूप है ,आप आनंद स्वरूप है.
satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
प्रश्न : ध्यान का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर : ध्यान का उद्देश्य एक ऐसे 'आनंद ' की प्राप्ति है ,जो कभी नष्ट न होता है ,जो हमारा आत्म स्वभाव है .
'आनंद' की प्राप्ति में दुखों का नाश छिपा हुआ है अर्थात दुखों की आत्यंतिक निवृति होना .
'आनंद ' हमारा स्वभाव है ,स्वरूप है .आत्मा आनंद स्वरूप है .
सुख-दुःख मन के अंतर्गत हैं ,आनंद और आत्मा मन के परे हैं .
अतः मन की किसी क्रिया द्वारा आत्मा के आनंद को नहीं पाया जा सकता है.
ध्यान मन का अतिक्रमण है ,ध्यान मन से मुक्ति है ताकि मन के अतीत आत्मा के आनंद को पाया जा सके .
ध्यान मन की कोई क्रिया नहीं है ,अपितु मन की अक्रिय अवस्था को ध्यान कहते है .मन की अक्रिय जागरूक अवस्था ध्यान
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एकाग्रता ,पूजा -पाठ ,मंत्र जाप ,त्राटक ,चक्र व कुण्डिलिनी जागरण ये सभी ध्यान नहीं है ,ये सभी मन की क्रियाएँ हैं.
मन की क्रिया द्वारा मन का अतिक्रमण संभव नहीं है .क्योंकि प्रत्येक मन की क्रिया में मन व अहम उपस्थित रहेगा .
जब मन की कोई क्रिया नहीं है अर्थात आप कुछ नहीं कर रहे है सिर्फ जागरूक हैं ,साक्षी है ,विश्रांत हैं ,मात्र होनापन है
यह है 'ध्यान '.आप न तो एकाग्रता कर रहे है ,न मंत्र जाप कर रहे हैं ,न त्राटक,न पूजा पाठ ,न चक्र या कुण्डिलिनी जागरण
आप मात्र मन के साक्षी हैं ,दृष्टा है ,मात्र "आप हैं " -यह है ध्यान . ध्यान का आपका स्वरूप है ,आप आनंद स्वरूप है.
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प्रणाम जी
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