वास्तविक ब्रह्ममुनि वही है, जो चौदह लोकों के इस ब्रह्माण्ड से अलग हो जायें। परमधाम में विराजमान अपने प्राणवल्लभ को छोड़कर अन्य सांसारिक वस्तुओं के मोह का पूर्णतया परित्याग कर दें।
पृथ्वी, स्वर्ग तथा बैकुण्ठ आदि लोकों के भोग नश्वर हैं, और माया के बन्धन में बांधने वाले हैं, ऐसा जानकर जो इनकी स्वप्न में भी कामना न करे और सभी प्रकार की तृष्णाओं (लोकेषणा, वित्तेषणा तथा दारेषणा) का परित्याग कर दे, तो ऐसा कहा जा सकता है कि उसने इस संसार में रहते हुए भी चौदह लोकों के ब्रह्माण्ड का परित्याग कर दिया है (उड़ा दिया है)। ऐसे व्यक्ति के हृदय में मात्र परमात्मा की ही छवि अखण्ड रूप से बसी होती है।
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment