Wednesday, December 16, 2015

ऐसा कभी नहीं समझना कि परमतत्त्वको किसीने प्राप्त नहीं किया.

जिन जानो पाया नहीं, है पावनहार परवान।
सोए छिपे इन छलथें, वाकी मिले न कासों तान।।

ऐसा कभी नहीं समझना कि परमतत्त्वको किसीने प्राप्त नहीं किया. उस तत्त्वको यथार्थ रूपसे पानेवाले भी इसी संसारमें हैं. किन्तु वे सब इस छल-छद्मरूप मायासे छिपकर रहते हैं. उनकी सुर-तान किसीसे नहीं मिलती.
परमात्माके ऐसे प्रेमी भक्त छल-प्रपञ्चपूर्ण विश्वसे छिपे हुए रहते हैं. उनके लिए सांसारिक सभी वस्तुएँ सर्वथा तुच्छ हैं. वे अपने परमात्माके प्रेममें मस्त रहकर खेलते है और अपना सर्वस्व भूल जाते हैं.
ऐसे प्रेमी की आत्मा संसारमें न रहकर अपने परमात्माके प्रकाशसे प्रकाशित रहती है. वह तो अपने परमात्माके प्रेममें ही विभोर रहता है. भौतिक वैभव उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता.
वस्तुतः जो परमात्माके प्रेमी हैं वे तो कहीं एकान्तमें छिपकर ही रहते हैं. उनके मुखसे किसी भी शब्दका उच्चारण नहीं होता अर्थात् वे कुछ कहते ही नहीं. यदि उनके मुखसे कभी कोई शब्द निकल भी जाएँ तो ज्ञाानी लोग उन शब्दोंका मर्म कैसे जान सकते हैं ?

प्रणाम जी

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