नाम पर झगडा कयों .."मंथन"
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कृष्ण शब्द के अनेक अर्थ हैं।
1-कृष् धातु का एक अर्थ है खेत जोतना,अर्थात वे जो खींच लेते हैं,
2-दूसरा अर्थ है आकर्षित करना।
वे जो प्रत्येक
को अपनी ओरआकर्षित करते हैं,
3-कृष्ण का अर्थ है विश्व का प्राण,
उसकी आत्मा। जो सम्पूर्ण
संसार के प्राण हैं- वही हैं कृष्ण।
4-कृष्ण का अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं-
पन' में रहता है।मैं हूँ, क्योंकि परमात्मा है।
इसलिय धर्मगरन्थों में पूर्णब्रह्म परमात्मा को कृष्ण नाम से सम्बोधित किया गया है..
ईश्वर: परम : कृष्ण: सच्चिदानन्द विग्रह: |
अनादिरादि गोविन्द: सर्वकारणकारणम् ||
श्रीकृष्ण परम ईश्वर है, सच्चिदानन्द- विग्रह है, अनादि है| गोविन्द है एवम सब कारण के कारण है|
जबकी परमातमा शब्दातीत है..
अछर अछररातीत कहावहि, सो भी कहियत इत सब्द ।
सब्दातित क्यों पाबही, ए जो दुनिया हद ॥ कि. १०७/७**
इन सरूप की इन जुबां , कही न जाए सिफत ।
सब्दातीत के पार की , सो कहनी जुबां हद इत ।।
परमात्मा कहते हैं, 'ये यथा मां प्रपद्यन्ते'
जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं, जो भी हम इस
विश्व में देखते हैं- वह सब कुछ परमात्मा का ही है।
उनकी ही सत्ता है..
कृष्ण कोई शरीर रही है कयोंकी शरीर त्रिगुणातमक है.. त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के इन तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं....
इसलिय कृष्ण कोई वजूद का नाम नही है व्यापकता कृष्ण है.. परमधाम मे सत्य आकर्षण है परमधाम निज स्वरूप है आनंद का और आनंद ही बृह्म है.. आतमांये अंश है परमात्मा की ..और अंशी अपने अंश की और सदैव आकृषित रहती है जैसे मिट्टी का ढ़ेला कितना भी ऊपर फेंको पर वापस पृथ्वी की और ही आता है कयोंकी वो उसका अंश है इसी तरह ऐसे ही अग्नि उपर उठती है कयोंकी अंश है सुर्य का इसी इसी प्रकार हम आत्मांये आनंद अंग होने के कारण सदैव आनंद की और आकर्षित रहतीं हैं आनंद ही बृह्म है इसलिय हमारा परम आकर्षण परमात्मा है यानी वो हमारे सबसे बडे कृष्ण हैं. कयोंकी आकर्षण ही कृष्ण है परमात्मा परम आकर्षण हैं इसलिय वो परम कृष्ण हैं..आत्मांये धाम की और आकर्षित रहतीं है इसलिय परमधाम हमारा कृष्ण है..
कृष्ण को अगर किसी शरीर का नाम समझते हो तो तो तुरंत अपना मार्ग बदलें कयोंकी आप विपरित मार्ग पर हैं..संकिर्ता कृष्ण नही है व्यापकता कृष्ण है...यही शुक्षम भेद ना समझपाने के कारण हम परमात्मा को पाने के बजाय उनका नाम पकड कर बैठ जाते हैं व हममें विकार उत्पन्न हो जाते हैं ..ये भी सत्य है की संसीर में सभी प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष केवल परमात्मा का ही सेवन करते है और उसे ही याने कृष्ण को ही चाहते है..बस सत्यबोध के अभाव में सार त्तव ग्रहण नही हो पाता ..
मेरी बात से अगर कीसी को ठेस पहुचि हो तो मै आपसे चरण वंदन क्षमा प्रार्थी हूं..
प्रणाम जी
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कृष्ण शब्द के अनेक अर्थ हैं।
1-कृष् धातु का एक अर्थ है खेत जोतना,अर्थात वे जो खींच लेते हैं,
2-दूसरा अर्थ है आकर्षित करना।
वे जो प्रत्येक
को अपनी ओरआकर्षित करते हैं,
3-कृष्ण का अर्थ है विश्व का प्राण,
उसकी आत्मा। जो सम्पूर्ण
संसार के प्राण हैं- वही हैं कृष्ण।
4-कृष्ण का अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं-
पन' में रहता है।मैं हूँ, क्योंकि परमात्मा है।
इसलिय धर्मगरन्थों में पूर्णब्रह्म परमात्मा को कृष्ण नाम से सम्बोधित किया गया है..
ईश्वर: परम : कृष्ण: सच्चिदानन्द विग्रह: |
अनादिरादि गोविन्द: सर्वकारणकारणम् ||
श्रीकृष्ण परम ईश्वर है, सच्चिदानन्द- विग्रह है, अनादि है| गोविन्द है एवम सब कारण के कारण है|
जबकी परमातमा शब्दातीत है..
अछर अछररातीत कहावहि, सो भी कहियत इत सब्द ।
सब्दातित क्यों पाबही, ए जो दुनिया हद ॥ कि. १०७/७**
इन सरूप की इन जुबां , कही न जाए सिफत ।
सब्दातीत के पार की , सो कहनी जुबां हद इत ।।
परमात्मा कहते हैं, 'ये यथा मां प्रपद्यन्ते'
जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं, जो भी हम इस
विश्व में देखते हैं- वह सब कुछ परमात्मा का ही है।
उनकी ही सत्ता है..
कृष्ण कोई शरीर रही है कयोंकी शरीर त्रिगुणातमक है.. त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के इन तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं....
इसलिय कृष्ण कोई वजूद का नाम नही है व्यापकता कृष्ण है.. परमधाम मे सत्य आकर्षण है परमधाम निज स्वरूप है आनंद का और आनंद ही बृह्म है.. आतमांये अंश है परमात्मा की ..और अंशी अपने अंश की और सदैव आकृषित रहती है जैसे मिट्टी का ढ़ेला कितना भी ऊपर फेंको पर वापस पृथ्वी की और ही आता है कयोंकी वो उसका अंश है इसी तरह ऐसे ही अग्नि उपर उठती है कयोंकी अंश है सुर्य का इसी इसी प्रकार हम आत्मांये आनंद अंग होने के कारण सदैव आनंद की और आकर्षित रहतीं हैं आनंद ही बृह्म है इसलिय हमारा परम आकर्षण परमात्मा है यानी वो हमारे सबसे बडे कृष्ण हैं. कयोंकी आकर्षण ही कृष्ण है परमात्मा परम आकर्षण हैं इसलिय वो परम कृष्ण हैं..आत्मांये धाम की और आकर्षित रहतीं है इसलिय परमधाम हमारा कृष्ण है..
कृष्ण को अगर किसी शरीर का नाम समझते हो तो तो तुरंत अपना मार्ग बदलें कयोंकी आप विपरित मार्ग पर हैं..संकिर्ता कृष्ण नही है व्यापकता कृष्ण है...यही शुक्षम भेद ना समझपाने के कारण हम परमात्मा को पाने के बजाय उनका नाम पकड कर बैठ जाते हैं व हममें विकार उत्पन्न हो जाते हैं ..ये भी सत्य है की संसीर में सभी प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष केवल परमात्मा का ही सेवन करते है और उसे ही याने कृष्ण को ही चाहते है..बस सत्यबोध के अभाव में सार त्तव ग्रहण नही हो पाता ..
मेरी बात से अगर कीसी को ठेस पहुचि हो तो मै आपसे चरण वंदन क्षमा प्रार्थी हूं..
प्रणाम जी
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