सुप्रभात जी
नाम रूपादिकाः सर्वे मिथ्या सर्वेषु विभ्रमः ।
अज्ञान मोहिता मूढ़ा यावत्तत्त्वं न विद्यते ॥
(शिव स्वरोदय २६)
जब तक परमतत्त्वबोध नहीं हो जाता तब तक नाम-रूप आदि सभी भ्रम मिथ्या हैं और अज्ञान जनित मूढ़ता भी तभी तक है |
जब तक तुम्हे परम तत्व याने परमात्मा और आत्मा की सत्यता और उनके सुप्रभात जी
नाम रूपादिकाः सर्वे मिथ्या सर्वेषु विभ्रमः ।
अज्ञान मोहिता मूढ़ा यावत्तत्त्वं न विद्यते ॥
(शिव स्वरोदय २६)
जब तक परमतत्त्वबोध नहीं हो जाता तब तक नाम-रूप आदि सभी भ्रम मिथ्या हैं और अज्ञान जनित मूढ़ता भी तभी तक है |
जब तक तुम्हे परम तत्व याने परमात्मा और आत्मा की सत्यता और उनके एकत्व भाव का बोध नही हो जाता तब तक मन में दूैतभाव प्रबल रूप से अपना खेल करता रहेगा तुम भ्रमित होकर नाम जाप मे उलझे रहोगे और मन से रूप बनाकर या ग्रन्थो में दिय शब्द रूप को ही सत्य मान कर उस असत्य का ही ध्यान करोगे और कालआंतर तक मन के दुैतभाव के खेल में ही उल्झे रहोगे..इसलिय परमात्मा और आत्मा के सत्य एकत्व का बोध होना आवश्यक जो किसी के भी बताने से नही आयगा खुद की खोज करनी होगी..
ब्रम्हाभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम्।
येनाद्वितीयमानन्दं ब्रम्ह सम्पद्यते बुधै:।।
(विवेक चूड़ामणि—२२५)
ब्रम्ह और आत्मा के अभेद का ज्ञान ही भवबन्धन से मुक्त होने का कारण है, जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुषअद्वितीय आनन्दरूपब्रम्हपद को प्राप्त कर लेता है ..satsang links 👇
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प्रणाम जीका बोध नही हो जाता तब तक मन में दूैतभाव प्रबल रूप से अपना खेल करता रहेगा तुम भ्रमित होकर नाम जाप मे उलझे रहोगे और मन से रूप बनाकर या ग्रन्थो में दिय शब्द रूप को ही सत्य मान कर उस असत्य का ही ध्यान करोगे और कालआंतर तक मन के दुैतभाव के खेल में ही उल्झे रहोगे..इसलिय परमात्मा और आत्मा के सत्य एकत्व का बोध होना आवश्यक जो किसी के भी बताने से नही आयगा खुद की खोज करनी होगी..
ब्रम्हाभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम्।
येनाद्वितीयमानन्दं ब्रम्ह सम्पद्यते बुधै:।।
(विवेक चूड़ामणि—२२५)
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प्रणाम जी
नाम रूपादिकाः सर्वे मिथ्या सर्वेषु विभ्रमः ।
अज्ञान मोहिता मूढ़ा यावत्तत्त्वं न विद्यते ॥
(शिव स्वरोदय २६)
जब तक परमतत्त्वबोध नहीं हो जाता तब तक नाम-रूप आदि सभी भ्रम मिथ्या हैं और अज्ञान जनित मूढ़ता भी तभी तक है |
जब तक तुम्हे परम तत्व याने परमात्मा और आत्मा की सत्यता और उनके सुप्रभात जी
नाम रूपादिकाः सर्वे मिथ्या सर्वेषु विभ्रमः ।
अज्ञान मोहिता मूढ़ा यावत्तत्त्वं न विद्यते ॥
(शिव स्वरोदय २६)
जब तक परमतत्त्वबोध नहीं हो जाता तब तक नाम-रूप आदि सभी भ्रम मिथ्या हैं और अज्ञान जनित मूढ़ता भी तभी तक है |
जब तक तुम्हे परम तत्व याने परमात्मा और आत्मा की सत्यता और उनके एकत्व भाव का बोध नही हो जाता तब तक मन में दूैतभाव प्रबल रूप से अपना खेल करता रहेगा तुम भ्रमित होकर नाम जाप मे उलझे रहोगे और मन से रूप बनाकर या ग्रन्थो में दिय शब्द रूप को ही सत्य मान कर उस असत्य का ही ध्यान करोगे और कालआंतर तक मन के दुैतभाव के खेल में ही उल्झे रहोगे..इसलिय परमात्मा और आत्मा के सत्य एकत्व का बोध होना आवश्यक जो किसी के भी बताने से नही आयगा खुद की खोज करनी होगी..
ब्रम्हाभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम्।
येनाद्वितीयमानन्दं ब्रम्ह सम्पद्यते बुधै:।।
(विवेक चूड़ामणि—२२५)
ब्रम्ह और आत्मा के अभेद का ज्ञान ही भवबन्धन से मुक्त होने का कारण है, जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुषअद्वितीय आनन्दरूपब्रम्हपद को प्राप्त कर लेता है ..satsang links 👇
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प्रणाम जीका बोध नही हो जाता तब तक मन में दूैतभाव प्रबल रूप से अपना खेल करता रहेगा तुम भ्रमित होकर नाम जाप मे उलझे रहोगे और मन से रूप बनाकर या ग्रन्थो में दिय शब्द रूप को ही सत्य मान कर उस असत्य का ही ध्यान करोगे और कालआंतर तक मन के दुैतभाव के खेल में ही उल्झे रहोगे..इसलिय परमात्मा और आत्मा के सत्य एकत्व का बोध होना आवश्यक जो किसी के भी बताने से नही आयगा खुद की खोज करनी होगी..
ब्रम्हाभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम्।
येनाद्वितीयमानन्दं ब्रम्ह सम्पद्यते बुधै:।।
(विवेक चूड़ामणि—२२५)
ब्रम्ह और आत्मा के अभेद का ज्ञान ही भवबन्धन से मुक्त होने का कारण है, जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुषअद्वितीय आनन्दरूपब्रम्हपद को प्राप्त कर लेता है ..satsang links 👇
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प्रणाम जी
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