सुप्रभात जी
हे जीव ! तुम्हारे द्वारा धारण किये गये शरीर (नाव)की उम्र ज्यादा हो गयी है। लौकिक कार्यों का उत्तरदायित्व भी बहुत अधिक है। विषय-विकारों की ऐसी तेज हवा बह रही है जो अपने झोंकों से मन को अशान्त बना रही है। ऐसी अवस्था में तूं परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जा। समर्पण ( पतवार ) के सहारे ही तूं परब्रह्म की कृपा का पात्र बनेगा और भवसागर से पार होगा। तूं शीघ्र-अति शीघ्र अपनी अज्ञानता की नींद को छोड़कर परमात्मा के प्रेम में दौड़ लगा।
संतगुरू नानक जी के पास सतसंग में एक लड़का प्रतिदिन आकर बैठ जाता था।
एक दिन नानक जी ने उससे पूछाः "बेटा ! कार्तिक के महीने में सुबह इतनी जल्दी आ जाता है, क्यों ?
"वह बोलाः "महाराज ! क्या पता कब मौत आकर ले जाये ?
"नानक जीः "इतनी छोटी-सी उम्र का लड़का ! अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी ? अभी तो तू जवान होगा, बूढ़ा होगा, फिर मौत आयेगी।
"लड़काः "महाराज ! मेरी माँ चूल्हा जला रही थी। बड़ी-बड़ी लकड़ियों को आगने नहीं पकड़ा तो फिर उन्होंने मुझसे छोटी-छोटी लकड़ियाँ मँगवायी। माँ ने छोटी-छोटी लकड़ियाँ डालीं तो उन्हें आग ने जल्दी पकड़ लिया। इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़ ले। इसीलिएमैं अभी से सतसंग में आ जाता हूँ।
जल्दी से परमात्मा का ध्यान करके जीवन सफल बना लो इन स्वांसो से बडा दगाबाज कोइ नही है ..कहीं बाद मे पछताना ना पडे..
satsangwithparveen.blogspot.in
प्रणाम जी
हे जीव ! तुम्हारे द्वारा धारण किये गये शरीर (नाव)की उम्र ज्यादा हो गयी है। लौकिक कार्यों का उत्तरदायित्व भी बहुत अधिक है। विषय-विकारों की ऐसी तेज हवा बह रही है जो अपने झोंकों से मन को अशान्त बना रही है। ऐसी अवस्था में तूं परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जा। समर्पण ( पतवार ) के सहारे ही तूं परब्रह्म की कृपा का पात्र बनेगा और भवसागर से पार होगा। तूं शीघ्र-अति शीघ्र अपनी अज्ञानता की नींद को छोड़कर परमात्मा के प्रेम में दौड़ लगा।
संतगुरू नानक जी के पास सतसंग में एक लड़का प्रतिदिन आकर बैठ जाता था।
एक दिन नानक जी ने उससे पूछाः "बेटा ! कार्तिक के महीने में सुबह इतनी जल्दी आ जाता है, क्यों ?
"वह बोलाः "महाराज ! क्या पता कब मौत आकर ले जाये ?
"नानक जीः "इतनी छोटी-सी उम्र का लड़का ! अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी ? अभी तो तू जवान होगा, बूढ़ा होगा, फिर मौत आयेगी।
"लड़काः "महाराज ! मेरी माँ चूल्हा जला रही थी। बड़ी-बड़ी लकड़ियों को आगने नहीं पकड़ा तो फिर उन्होंने मुझसे छोटी-छोटी लकड़ियाँ मँगवायी। माँ ने छोटी-छोटी लकड़ियाँ डालीं तो उन्हें आग ने जल्दी पकड़ लिया। इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़ ले। इसीलिएमैं अभी से सतसंग में आ जाता हूँ।
जल्दी से परमात्मा का ध्यान करके जीवन सफल बना लो इन स्वांसो से बडा दगाबाज कोइ नही है ..कहीं बाद मे पछताना ना पडे..
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प्रणाम जी
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