पेहेन पाखर गज घंट बजाए चल,
पैठ संकोड सुई नाके समाए।
डार आकार संभार जिन ओसरे,
दौड चढ पहाड सिर झांप खाए।।
शुद्धसत्य रूपी कवच पहनकर वेद कतेबके ज्ञाानरूपी घण्टे बजाते हुए निर्भय होकर हाथीकी चालसे मस्त होकर चलो. सत्यताके बोद्ध द्वारा सभी प्रकार के शरीरों (जीव,शुक्ष्म शरीर ,कारण शरीर ,महाकारण आदी )को समेटकर धागे की नोक के समान शुक्ष्म होकर सुईके छेदके समान सूक्ष्म प्रेमकी संकड़ी गलीमें प्रवेश करो. परमात्माके प्रेममें स्वयंको सर्मिपत करनेमें पीछे मत हटो. पहाड़ के समान ऊँचे वैकुण्ठ, शून्य, निराकारको पार कर परमधाममें छलाङ्ग लगाओ...
प्रणाम जी
पैठ संकोड सुई नाके समाए।
डार आकार संभार जिन ओसरे,
दौड चढ पहाड सिर झांप खाए।।
शुद्धसत्य रूपी कवच पहनकर वेद कतेबके ज्ञाानरूपी घण्टे बजाते हुए निर्भय होकर हाथीकी चालसे मस्त होकर चलो. सत्यताके बोद्ध द्वारा सभी प्रकार के शरीरों (जीव,शुक्ष्म शरीर ,कारण शरीर ,महाकारण आदी )को समेटकर धागे की नोक के समान शुक्ष्म होकर सुईके छेदके समान सूक्ष्म प्रेमकी संकड़ी गलीमें प्रवेश करो. परमात्माके प्रेममें स्वयंको सर्मिपत करनेमें पीछे मत हटो. पहाड़ के समान ऊँचे वैकुण्ठ, शून्य, निराकारको पार कर परमधाममें छलाङ्ग लगाओ...
प्रणाम जी
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