सुप्रभात जी
आपने अपने आदेश (इच्छा) से ही यह खेल बनाया। हम भी इस खेल में आपकी इच्छा से ही आये। आपकी इच्छा से ही आपका दीदार होता है। यह बात तो पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि आपकी इच्छा के बिना कुछ है ही नहीं। परमात्मा के हृदय में होने वाली इच्छा (भाव) को ही इस संसार के शब्दों में हुक्म कहा गया है, जिसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता। ।। परमात्मा के आदेश (हुक्म) से ही आत्मा के हृदय में प्रेम आता है। उनकी इच्छा ही उनके चरणों में अटूट ईमान (विश्वास) दिलाकर जागृत करती है। आचरण की कसौटी पर हुक्म ही खरा सिद्ध करता है। आपकी इच्छा के बिना तो कुछ है ही नहीं।
"हुकमें इस्क आवहीं, कदमों जगावे हुकम। करनी हुकम करावहीं, कछू ना बिना हुकम खसम"
प्रणाम जी
आपने अपने आदेश (इच्छा) से ही यह खेल बनाया। हम भी इस खेल में आपकी इच्छा से ही आये। आपकी इच्छा से ही आपका दीदार होता है। यह बात तो पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि आपकी इच्छा के बिना कुछ है ही नहीं। परमात्मा के हृदय में होने वाली इच्छा (भाव) को ही इस संसार के शब्दों में हुक्म कहा गया है, जिसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता। ।। परमात्मा के आदेश (हुक्म) से ही आत्मा के हृदय में प्रेम आता है। उनकी इच्छा ही उनके चरणों में अटूट ईमान (विश्वास) दिलाकर जागृत करती है। आचरण की कसौटी पर हुक्म ही खरा सिद्ध करता है। आपकी इच्छा के बिना तो कुछ है ही नहीं।
"हुकमें इस्क आवहीं, कदमों जगावे हुकम। करनी हुकम करावहीं, कछू ना बिना हुकम खसम"
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment