सुप्रभात जी
कठोपनिषद् का कथन है कि परमात्मा ने पाँच इन्द्रियों (आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा)का निर्माण किया है, जो बाहर के विषयों की ओर ही देखती हैं । एक-एक विषयों का सेवन करने वाले पतंग रूप के लिय, हाथी स्पर्श के लिय, हिरण ध्वनि के लिय , भौंरा सुगन्ध के लिय, और मछली रस के लिय जब मृत्यु के वशीभूत हो जाते हैं, तो पाँचो इन्द्रियों से पाँचो विषयों का सेवन करने वाले प्रमादी मनुष्य की क्या स्थिति हो सकती है जर सेचिय। अमृतत्व की इच्छा करने वाला कोई धैर्यशाली व्यक्ति ही अन्दर की ओर देखता है ..
प्रणाम जी
कठोपनिषद् का कथन है कि परमात्मा ने पाँच इन्द्रियों (आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा)का निर्माण किया है, जो बाहर के विषयों की ओर ही देखती हैं । एक-एक विषयों का सेवन करने वाले पतंग रूप के लिय, हाथी स्पर्श के लिय, हिरण ध्वनि के लिय , भौंरा सुगन्ध के लिय, और मछली रस के लिय जब मृत्यु के वशीभूत हो जाते हैं, तो पाँचो इन्द्रियों से पाँचो विषयों का सेवन करने वाले प्रमादी मनुष्य की क्या स्थिति हो सकती है जर सेचिय। अमृतत्व की इच्छा करने वाला कोई धैर्यशाली व्यक्ति ही अन्दर की ओर देखता है ..
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