घाट अवघाट सिलपाट अति सलबली,
तहां हाथ ना टिके पपील पाए।
वाओ वाए बढे आग फैलाए चढे,
जलें पर अनल ना चले उडाए।।
प्रेमरूपी मार्ग अत्यन्त विषम (महीन से भी महीन) है. उस पर हाथ (ग्यान का भार) भी नहीं टिकता और चींटीके पैर (ग्यान रहित व्यक्ति) भी नहीं ठहर सकते.
चारों तरफ इच्छा ,तृष्णा ,सम्प्रदायवाद, प्रभाववाद ,व्यक्तिवाद , माया का जड़वादी सतोगुण का जाल आदी से भरे हुए वातावरण को देख कर उसका हमारे मन पर प्रभाव रूपी पवनके चलने पर हमारे अंदर भी वो अग्नि रूप में और धधकती है. उससे आत्मारूपी पक्षीके प्रेम (इश्क) तथा विश्वास (ईमान) रूपी पंख जल जाते हैं. जिससे वह उड़कर अपने घर नही जा सकता है.
प्रणाम जी
तहां हाथ ना टिके पपील पाए।
वाओ वाए बढे आग फैलाए चढे,
जलें पर अनल ना चले उडाए।।
प्रेमरूपी मार्ग अत्यन्त विषम (महीन से भी महीन) है. उस पर हाथ (ग्यान का भार) भी नहीं टिकता और चींटीके पैर (ग्यान रहित व्यक्ति) भी नहीं ठहर सकते.
चारों तरफ इच्छा ,तृष्णा ,सम्प्रदायवाद, प्रभाववाद ,व्यक्तिवाद , माया का जड़वादी सतोगुण का जाल आदी से भरे हुए वातावरण को देख कर उसका हमारे मन पर प्रभाव रूपी पवनके चलने पर हमारे अंदर भी वो अग्नि रूप में और धधकती है. उससे आत्मारूपी पक्षीके प्रेम (इश्क) तथा विश्वास (ईमान) रूपी पंख जल जाते हैं. जिससे वह उड़कर अपने घर नही जा सकता है.
प्रणाम जी
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