हे परमात्मा! मेरे हृदयरूपी घरमें आप पधारें. इस संसाररूपी परदेसमें मुझे अकेली छोड.कर आप कहाँ चले गए हैं ?
मैं तो अज्ञाानकी निद्रामें सो रही थी. आप अज्ञाानरूपी रात्रिमें मुझे अकेली सोई हुई छोड.कर कहाँ चले गए ? (अज्ञाानरूपी निद्रासे) जागृत होकर देखा तो आपमेरे पास ही नहीं हैं.जाग्रत होकर पाया की ह्रदय में तो आप हो पर में तो आपसे धाम की तरह याहा आपका साथ चाहती हुं.. पीछे तो ज्ञाानका प्रभात हो जाएगा. अर्थात धाम में तो आपने मिलना ही है पर अगर याहां भी वैसे ही मिल लो तो ये आनंद कुछ और ही होगा.
प्रणाम जी
मैं तो अज्ञाानकी निद्रामें सो रही थी. आप अज्ञाानरूपी रात्रिमें मुझे अकेली सोई हुई छोड.कर कहाँ चले गए ? (अज्ञाानरूपी निद्रासे) जागृत होकर देखा तो आपमेरे पास ही नहीं हैं.जाग्रत होकर पाया की ह्रदय में तो आप हो पर में तो आपसे धाम की तरह याहा आपका साथ चाहती हुं.. पीछे तो ज्ञाानका प्रभात हो जाएगा. अर्थात धाम में तो आपने मिलना ही है पर अगर याहां भी वैसे ही मिल लो तो ये आनंद कुछ और ही होगा.
प्रणाम जी
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