एही अपनी जागनी, जो याद आवे निज सुख ।
इसक याहीसों आवहीं, याहीसों होइए सनमुख ।।
जागनी कया है ? अर्थात आत्म जाग्रती किसे काहा जाये ? वाणी कहती है की जब हमे अपने ही आनंद प्राप्त होने लग जाये तो समझो कि आतमा जाग्रत हो गयी है तब हमे खुद के मुलयान्कन कि आवयश्कता भी नही होगी कयोंकी उस वक्त हमे वो सुख मिलने आरम्भ हो जायेंगे तो तो हम मुलयान्कन की बजाये आनंद मे डूबे रहेंगे ..याहा ये भी ध्यान देने योग्य बात है की जागनी तब है जब निज सुख याने खुद के सुख याद अये ना की किसी बस्तु से हम सुख ले ..कयोंकि वो निज सुख नही है ,जैसे अगर हम परमधाम का वर्णन पढ़ रहे है तो हमे पढ़ने को मिलता है कि हीरे सा मन्दिर सुन्दर नक्कासियां कमर भर उन्चा चबुतरा ..साथ जी ये सब तो याहां की बाते है वाहां जो है वो आपका खुद का आनद है ये किसी के बताने से केसे मिलेगा ये तो तभी मिलेगा जब आप खुद उसको अनुभव करोगे वरना सुन्दर नक्कासियां कमर भर चबुतरा, गिलम ,नो भोम आदी तो आपको इस संसार मे भी बोहोत सुंदर मिल जायेंगे..इसलिये खुद कि आतम जब जाग्रत होगी तभी निजसुख मिलेनगे तभी प्रमात्मा से सच्चा प्रेम का अर्थ पता चलेगा..तभी पता चलेगा की प्रमात्मा के सन्मुख होना कया होता है.
जब खुद पता करोगे तभी होगा वरना तो सब किताबी बाते है पढते रहो सारी उम्र ..ढुंडते रहो आनंद ..जब तक आत्म जाग्रति का अर्थ ही नही जानोगे तो अभाव या प्रभाव में ही समय निकलता रहेगा..
प्रणाम जी
इसक याहीसों आवहीं, याहीसों होइए सनमुख ।।
जागनी कया है ? अर्थात आत्म जाग्रती किसे काहा जाये ? वाणी कहती है की जब हमे अपने ही आनंद प्राप्त होने लग जाये तो समझो कि आतमा जाग्रत हो गयी है तब हमे खुद के मुलयान्कन कि आवयश्कता भी नही होगी कयोंकी उस वक्त हमे वो सुख मिलने आरम्भ हो जायेंगे तो तो हम मुलयान्कन की बजाये आनंद मे डूबे रहेंगे ..याहा ये भी ध्यान देने योग्य बात है की जागनी तब है जब निज सुख याने खुद के सुख याद अये ना की किसी बस्तु से हम सुख ले ..कयोंकि वो निज सुख नही है ,जैसे अगर हम परमधाम का वर्णन पढ़ रहे है तो हमे पढ़ने को मिलता है कि हीरे सा मन्दिर सुन्दर नक्कासियां कमर भर उन्चा चबुतरा ..साथ जी ये सब तो याहां की बाते है वाहां जो है वो आपका खुद का आनद है ये किसी के बताने से केसे मिलेगा ये तो तभी मिलेगा जब आप खुद उसको अनुभव करोगे वरना सुन्दर नक्कासियां कमर भर चबुतरा, गिलम ,नो भोम आदी तो आपको इस संसार मे भी बोहोत सुंदर मिल जायेंगे..इसलिये खुद कि आतम जब जाग्रत होगी तभी निजसुख मिलेनगे तभी प्रमात्मा से सच्चा प्रेम का अर्थ पता चलेगा..तभी पता चलेगा की प्रमात्मा के सन्मुख होना कया होता है.
जब खुद पता करोगे तभी होगा वरना तो सब किताबी बाते है पढते रहो सारी उम्र ..ढुंडते रहो आनंद ..जब तक आत्म जाग्रति का अर्थ ही नही जानोगे तो अभाव या प्रभाव में ही समय निकलता रहेगा..
प्रणाम जी
Kyse jaane hm paramanand ko
ReplyDelete