सुप्रभात जी
मेरे जीवन के आधार (परमात्मा)! सुगन्धित फूलों पर मंडराते हुए मद से भरे ये भौंरे गुंजार कर रहे हैं। अब आप ही बताइए कि इस मनोहर ऋतु में आपके बिना एक भी घड़ी भी कैसे व्यतीत की जाये ? यदि तुच्छ भौरों को हर फूल पर मंडराने एवं उनका पराग चूसने का अधिकार है, आत्मा के हृदय रूपी भौंरे को अपने प्राणेश्वर( परमात्मा )के दीदार (दर्शन) एवं उनके प्रेम रस का पान करने का अधिकार क्यों नहीं ? क्या आत्मा की महिमा एक भौंरे से भी कम है, जो उसे हमने इतना असहाय बना दिया गया ?
आत्मा के हृदय रूपी भौंरे को अपने प्राणेश्वर( परमात्मा )रूपी पुष्प के उपर ही मंडराते रहने से आतम को अखंड रस की प्राप्ती होने लगती है..
प्रणाम जी
मेरे जीवन के आधार (परमात्मा)! सुगन्धित फूलों पर मंडराते हुए मद से भरे ये भौंरे गुंजार कर रहे हैं। अब आप ही बताइए कि इस मनोहर ऋतु में आपके बिना एक भी घड़ी भी कैसे व्यतीत की जाये ? यदि तुच्छ भौरों को हर फूल पर मंडराने एवं उनका पराग चूसने का अधिकार है, आत्मा के हृदय रूपी भौंरे को अपने प्राणेश्वर( परमात्मा )के दीदार (दर्शन) एवं उनके प्रेम रस का पान करने का अधिकार क्यों नहीं ? क्या आत्मा की महिमा एक भौंरे से भी कम है, जो उसे हमने इतना असहाय बना दिया गया ?
आत्मा के हृदय रूपी भौंरे को अपने प्राणेश्वर( परमात्मा )रूपी पुष्प के उपर ही मंडराते रहने से आतम को अखंड रस की प्राप्ती होने लगती है..
प्रणाम जी
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