Thursday, November 26, 2015

केवल एक ...

केवल एक ...

उस परमात्मा की सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश, राम और कृष्ण आराधना करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ वेद, स्मृति, गीता आदि सभी में इस बात के प्रमाण हैं। वेद और पुराण के अनुसार 'वह परमात्मा एक ही है' दूसरा कोई परमात्मा नहीं है। मत्स्य अवतार से लेकर कृष्ण तक सभी अवतारी पुरुष उस परमात्मा की शक्ति से ही परमात्मा के संदेश को पहुँचाते रहे हैं।
परमात्मा न तो भगवान है, न देवता, न दानव और न ही प्रकृति या उसकी अन्य कोई शक्ति। ‍ परमात्मा एक ही है अलग-अलग नहीं। परमात्मा अजन्मा है। जिन्होंने जन्म लिया है और जो मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं या फिर अजर-अमर हो गए हैं वे सभी परमात्मा नहीं हैं। जीन्होने वाणी मथन किया है या जो वेदज्ञ हैं, गीता के जानकार हैं और जिन्होंने उपनिषदों का अध्ययन किया है वे उक्त बातों से निश्चित सहमत होंगे। यही सनातन सत्य है।

ऋग्वेद (1-164-43)

।।इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद् विप्रा बहुधा वदंत्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहु: ।।-
भावार्थ :
जिसे लोग इन्द्र, मित्र, वरुण आदि कहते हैं, वह सत्ता केवल एक ही है; ऋषि लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है..

(यजुर्वेद 13.4)

सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं आनंदस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है ..

(अथर्ववेद 13.4.16-21)

वह न दो हैं, न ही तीन, न ही चार, न ही पाँच, न ही छः, न ही सात, न ही आठ, न ही नौ , और न ही दस हैं । इसके विपरीत वह सिर्फ और सिर्फ एक ही है । उसके सिवाय और कोई परमात्मा नहीं है । सब देवता उसमे निवास करते हैं और उसी से नियंत्रित होते हैं । इसलिए केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और किसी की नहीं ..

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प्रणाम जी

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