जेती चीजें अर्स में, सो सब मुतलक न्यामत।
सो मुतलक इलम बिना, क्यों पाइए हक खिलवत।।
परमधाम में जो भी एकत्व (एकदिली), नूर, प्रेम, आनन्द, आदि हैं, वे सभी निश्चित रूप से आत्माओं के लिये नेमतें (उनका आनंद सागर) हैं। ऐसी स्थिति में सर्वोपरि ज्ञान (तारतम ) के बिना परमात्मा की खिल्वत (आनंद का मूल सत्रोत)की पहचान नहीं हो सकती।
भाव--साथ जी परमात्मा के धर का विवरण करने का प्रयास है असत्य मे सत्य का विवरण केसे संभव होगा लेकीन कयोंकी करने वाले कोइ और हैं इसलिय उनके सहारे ये प्रयास है ..
खिलवत के वेसे तो परमधाम मे अनेक अर्थ हैं या ये कहें की अन्नत अर्थ हैं ...इसलिय सबका विवरण या व्याख्या संभव नही है , याहां केवल खिलवतखाना (मूलमिलावे) मे हम आतमायें कैसे परमात्मा से आनंद ग्रहण करते है यह बहोत ही गहन विषय है...
मूलमिलावे में जब परमात्मा अपने हृदये में हम आत्माओं को अपने सामने चाहते है तो उसी वक्त हम सब उनके सामने होते है क्योंकि हम सब उनके हृदये के अंग है परमात्मा हमे वहाँ आने का भी आनंद देते है वहा आने के बाद हमे आत्माओं को ऐसा अहसास होता है की हम केसे आये है ये केवल आने के भाव का आनंद है जो परमात्मा हम सब आत्मवों में डालते है तो किसी को लगता है की हम उनके लिए कोई दौड़ के आयी है कोई गाते हुए आयी है कोई छलांगे लगा के आयी है कोई घूमते हुए आयी है कोई पलक में प्रकाश से गतिमय होकर आयी है कोई बिना पांव चलाये ही गति से आयी है कोई चुम्बक कीतरह तेजी से खिचते हुए आई है कोई केवल प्रकाश को देखती हुयी आकर्षण के आनंद में आयी है इस प्रकार अनेक भाव परमात्मा हम आत्माओं में डालते है और ये भाव हम सब में एक साथ उत्पन्न होते है इसलिए हर आत्मा में सब भाव उत्पन्न होते है किसी को किसी से भिन्न भाव नही है सब को सभी भाव का आनंद मिलता है ,ये तो आने मात्र का भाव है वह आने के बाद हम सब आत्मायें एक साथ गुथ के बैठ जाते है जैसे खिचड़ी में दाने गूथे हुए होते है हम सबके अंग दुसरे से इस प्रकार गुथे है की हमे अहसास ही नही है की पास कोन है आगे कोन है पीछे कोन है क्योंकि सबको एकत्व का भाव ही रहता है सबको ऐसा लगता है की सब आत्मवो का पूरा समूह एक ही शरीर है और सबको अहसास होता है की जैसे वो परमात्मा के सबसे निकट है इसके बाद प्रमात्मा हमे अपनी नजरो से निहारते है उनकी नजरो से निकले वाला आनंद हम सब आत्माओं को इस प्रकार स्तब्ध कर देता है की जैसे हम सब मुर्तिया हो हम सब बेजान बुतों की तरह केवल आनंद ग्रहण करने में इतने मदमस्त हो जाते है की हमे उनके आलावा कोई भी बोध नही रहता उनकी नजरो से निकले वाला प्रकाशपुंज हमारी नजरो में समाने लगता है वो हमारी नजरो से हमारे हृदये में जाता हुआ स्पष्ट अनुभव होता है और वो अनुभव भी कैसा है जैसे कोई अत्येंत आन्नदित चीज़ हमारे कंठ से होकर हृदये में जा रही हो हृदये आनंद में तैरने लगया है आनंद अन्दर इतना हो जाता है की अब शरीर में समाना बंद हो जाता है और हमारे प्रत्येक रोमछिद्रो से बाहर निकले लगता है यह अहसास भी बोहोत आनंद दायक है प्रत्येक रोम छिद्र आनंद से भर जाता है पुरे शरीर में आनंद ही आनंद अब उसकी क्या व्याख्या करूं और ऐसा हर आत्मा के साथ होता है इसलिए हर आत्मा का आनंद रोम छिद्रों से बहार निकल कर हर आत्मा को मिलता है और मिलता भी केसे है क्योंकि हम सब एक साथ चौकड़ी लगा के बैठी है तो सबके तलवो याने पाँव के निचे का भाग एक दुसरे की तरफ होता है वही से हमे एक दुसरे का आनंद मिलता है इसी आनंद में परमात्मा हमे पुरे परम धाम की शैर करवा देते है ये भी बोहोत आनंद दायक विषये है जिसको कभी परमात्मा के हुकुम से ही जाहिर किया जायेगा ..यही खील्वात्खाना है जिसको देखने की इजाजत अक्षर ब्रह्म को भी नही है उनको भी नही पता की वहां केसी आनंद की लीला होती है मूलमिलावा ही परमधाम के आनंद का मूल है इसलिए हमे वहीं का ध्यान करना चाहिए .... यहीं पर हजरत मुहम्द साहिब ने देखा था की सब आत्मन्ये मूर्तियों की तरह बैठी है पर क्यों बैठी है जान नही पाया था ..ऐसा आनंद परमात्मा हमे दे रहे है ..
प्रणाम जी
सो मुतलक इलम बिना, क्यों पाइए हक खिलवत।।
परमधाम में जो भी एकत्व (एकदिली), नूर, प्रेम, आनन्द, आदि हैं, वे सभी निश्चित रूप से आत्माओं के लिये नेमतें (उनका आनंद सागर) हैं। ऐसी स्थिति में सर्वोपरि ज्ञान (तारतम ) के बिना परमात्मा की खिल्वत (आनंद का मूल सत्रोत)की पहचान नहीं हो सकती।
भाव--साथ जी परमात्मा के धर का विवरण करने का प्रयास है असत्य मे सत्य का विवरण केसे संभव होगा लेकीन कयोंकी करने वाले कोइ और हैं इसलिय उनके सहारे ये प्रयास है ..
खिलवत के वेसे तो परमधाम मे अनेक अर्थ हैं या ये कहें की अन्नत अर्थ हैं ...इसलिय सबका विवरण या व्याख्या संभव नही है , याहां केवल खिलवतखाना (मूलमिलावे) मे हम आतमायें कैसे परमात्मा से आनंद ग्रहण करते है यह बहोत ही गहन विषय है...
मूलमिलावे में जब परमात्मा अपने हृदये में हम आत्माओं को अपने सामने चाहते है तो उसी वक्त हम सब उनके सामने होते है क्योंकि हम सब उनके हृदये के अंग है परमात्मा हमे वहाँ आने का भी आनंद देते है वहा आने के बाद हमे आत्माओं को ऐसा अहसास होता है की हम केसे आये है ये केवल आने के भाव का आनंद है जो परमात्मा हम सब आत्मवों में डालते है तो किसी को लगता है की हम उनके लिए कोई दौड़ के आयी है कोई गाते हुए आयी है कोई छलांगे लगा के आयी है कोई घूमते हुए आयी है कोई पलक में प्रकाश से गतिमय होकर आयी है कोई बिना पांव चलाये ही गति से आयी है कोई चुम्बक कीतरह तेजी से खिचते हुए आई है कोई केवल प्रकाश को देखती हुयी आकर्षण के आनंद में आयी है इस प्रकार अनेक भाव परमात्मा हम आत्माओं में डालते है और ये भाव हम सब में एक साथ उत्पन्न होते है इसलिए हर आत्मा में सब भाव उत्पन्न होते है किसी को किसी से भिन्न भाव नही है सब को सभी भाव का आनंद मिलता है ,ये तो आने मात्र का भाव है वह आने के बाद हम सब आत्मायें एक साथ गुथ के बैठ जाते है जैसे खिचड़ी में दाने गूथे हुए होते है हम सबके अंग दुसरे से इस प्रकार गुथे है की हमे अहसास ही नही है की पास कोन है आगे कोन है पीछे कोन है क्योंकि सबको एकत्व का भाव ही रहता है सबको ऐसा लगता है की सब आत्मवो का पूरा समूह एक ही शरीर है और सबको अहसास होता है की जैसे वो परमात्मा के सबसे निकट है इसके बाद प्रमात्मा हमे अपनी नजरो से निहारते है उनकी नजरो से निकले वाला आनंद हम सब आत्माओं को इस प्रकार स्तब्ध कर देता है की जैसे हम सब मुर्तिया हो हम सब बेजान बुतों की तरह केवल आनंद ग्रहण करने में इतने मदमस्त हो जाते है की हमे उनके आलावा कोई भी बोध नही रहता उनकी नजरो से निकले वाला प्रकाशपुंज हमारी नजरो में समाने लगता है वो हमारी नजरो से हमारे हृदये में जाता हुआ स्पष्ट अनुभव होता है और वो अनुभव भी कैसा है जैसे कोई अत्येंत आन्नदित चीज़ हमारे कंठ से होकर हृदये में जा रही हो हृदये आनंद में तैरने लगया है आनंद अन्दर इतना हो जाता है की अब शरीर में समाना बंद हो जाता है और हमारे प्रत्येक रोमछिद्रो से बाहर निकले लगता है यह अहसास भी बोहोत आनंद दायक है प्रत्येक रोम छिद्र आनंद से भर जाता है पुरे शरीर में आनंद ही आनंद अब उसकी क्या व्याख्या करूं और ऐसा हर आत्मा के साथ होता है इसलिए हर आत्मा का आनंद रोम छिद्रों से बहार निकल कर हर आत्मा को मिलता है और मिलता भी केसे है क्योंकि हम सब एक साथ चौकड़ी लगा के बैठी है तो सबके तलवो याने पाँव के निचे का भाग एक दुसरे की तरफ होता है वही से हमे एक दुसरे का आनंद मिलता है इसी आनंद में परमात्मा हमे पुरे परम धाम की शैर करवा देते है ये भी बोहोत आनंद दायक विषये है जिसको कभी परमात्मा के हुकुम से ही जाहिर किया जायेगा ..यही खील्वात्खाना है जिसको देखने की इजाजत अक्षर ब्रह्म को भी नही है उनको भी नही पता की वहां केसी आनंद की लीला होती है मूलमिलावा ही परमधाम के आनंद का मूल है इसलिए हमे वहीं का ध्यान करना चाहिए .... यहीं पर हजरत मुहम्द साहिब ने देखा था की सब आत्मन्ये मूर्तियों की तरह बैठी है पर क्यों बैठी है जान नही पाया था ..ऐसा आनंद परमात्मा हमे दे रहे है ..
प्रणाम जी
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