सुप्रभात जी
आत्मा-परमात्मा की प्राप्ति से सम्बंधित विचारधारा एवं क्रियाओं-प्रक्रियाओं को आत्मिक या साधनात्मक धारणा कहते हैं। अधिकतर सद्ग्रन्थों की रचना इसी धारणा वाले लोगों द्वारा हुई है। सृष्टि की रचना दो वस्तुओं के मेल से हुयी है, जड़ और चेतन। जड़ के अन्तर्गत पंच पदार्थ तत्त्व---आकाश, वायु, अग्नि, जल और थल आते हैं। इन्हीं पंच पदार्थ तत्त्वों से बनी विभिन्न रूप-आकृति ही सम्पूर्ण दृश्यमान जगत् है, जिसमें मानव-शरीर सर्वोत्तम आकृति है। यह देव-दुर्लभ है। जीव के लाखों-करोड़ों योनियों के संचित-पुण्यों के फलस्वरूप परमप्रभु की अहेतुकी कृपा से कहीं जीव को यह शरीर प्राप्त होता है। यही कारण है कि चेतन की जानकारी रखने वाले ऋषि-महर्षि एवं महात्मागण जड़ प्रधान (सांसारिक) व्यक्तियों को बारम्बार संचेत करते रहते हैं कि हे मानव बंधुओं! आप चेतन हो, जड़-शरीर एवं जड़-संसार (कामिनी-कांचन) में मत फँसो। कीट-पतंग आदि चौरासी लाख योनियों से भटकते आए हो। यह मानव-शरीर आपको मुक्त होने और परमात्मा को पाने के लिए ही मिलती है। यदि इससे मुक्ति और अमरता (अखंड धाम) को प्राप्त नहीं कर लेते हैं तो पुनः उन्हीं कीट-पतंग, शूकर-कूकर आदि चौरासी लाख योनियों में करोड़ों वर्ष तक भटकना पड़ेगा। आप क्षणिक भौतिक सुखों पर मोहित न हो....
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
आत्मा-परमात्मा की प्राप्ति से सम्बंधित विचारधारा एवं क्रियाओं-प्रक्रियाओं को आत्मिक या साधनात्मक धारणा कहते हैं। अधिकतर सद्ग्रन्थों की रचना इसी धारणा वाले लोगों द्वारा हुई है। सृष्टि की रचना दो वस्तुओं के मेल से हुयी है, जड़ और चेतन। जड़ के अन्तर्गत पंच पदार्थ तत्त्व---आकाश, वायु, अग्नि, जल और थल आते हैं। इन्हीं पंच पदार्थ तत्त्वों से बनी विभिन्न रूप-आकृति ही सम्पूर्ण दृश्यमान जगत् है, जिसमें मानव-शरीर सर्वोत्तम आकृति है। यह देव-दुर्लभ है। जीव के लाखों-करोड़ों योनियों के संचित-पुण्यों के फलस्वरूप परमप्रभु की अहेतुकी कृपा से कहीं जीव को यह शरीर प्राप्त होता है। यही कारण है कि चेतन की जानकारी रखने वाले ऋषि-महर्षि एवं महात्मागण जड़ प्रधान (सांसारिक) व्यक्तियों को बारम्बार संचेत करते रहते हैं कि हे मानव बंधुओं! आप चेतन हो, जड़-शरीर एवं जड़-संसार (कामिनी-कांचन) में मत फँसो। कीट-पतंग आदि चौरासी लाख योनियों से भटकते आए हो। यह मानव-शरीर आपको मुक्त होने और परमात्मा को पाने के लिए ही मिलती है। यदि इससे मुक्ति और अमरता (अखंड धाम) को प्राप्त नहीं कर लेते हैं तो पुनः उन्हीं कीट-पतंग, शूकर-कूकर आदि चौरासी लाख योनियों में करोड़ों वर्ष तक भटकना पड़ेगा। आप क्षणिक भौतिक सुखों पर मोहित न हो....
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