Sunday, November 1, 2015

बंसी कान्हन अजब बजाई

परमात्मा ने बड़ी ही विचित्र बंसी बजाई है
तू  बंसी बजाने वाला सब से  प्रेम करने वाला है तू  प्रेम का सगर है
तू अपने आनंद रूपी डोर से अपनी आनंद अंग  आत्मवो को नियंत्रित करता है अर्थात हुकुम से चलता है
इसलिए हम सबका सुर तूने आप ही हुकुम से मिला रखा है
परमात्मा की वंसी बड़ी ही विचित्र है

तेरे इस बंसी रूप को लोग कान्हा कहते है तू ही सबको अखंड करने वाला है
पर तू किसी को भी जाहिरी रूप में नजर नही आता केवल बातूनी रूप से ही जाहिर होता है
इसलिए तेरा ये खेल बड़ा ही विचित्र प्रतीत होता है
तूने बड़ी ही विचित्र बंसी बजा रखी है

तेरी ये बंसी हर कोई सुनता है अर्थात तेरी और हर कोई आकर्षित हो रहा है
पर कोई बिरला ही इसका का भेद जान  पाता है
जीस  किसी को भी चेतन अर्थात बेहद का भेद मिल जाता है वही इस बंसी के आनंद का अधिकारी बनता है

इस बंसी की आवाज सुनके मेरी आत्मा में हिलोरे उठने लगते है
परन्तु ज्ञानी कहलाने वाले इसके अलग अलग मतलब निकाल कर आपस में ही लड़ते है
वे केवल इसका एक सुर ही देख पते है अर्थात केवल जाहिरी अर्थ ही लेते है

इस बंसी की याने तेरे  प्रेम की महिमा बड़ी ही विस्तार से है  जिसने अपने में खोजा है उसने ही पाया है
इसको पाना बड़ा ही सरल है कईयों ने अपने हृदये में पाया है ऐसे प्रमाण मिलते है
इसलिए ये बंसी बड़ी ही विचित्र है

इस बनसी के पांच सत्ये तारे है [अक्षर ब्रह्म और उसके चतुर्स्पाद ]
पर इसको फुकने वाला अर्थात इनके आनंद का स्त्रोत इनसे अलग है
जिसने सबके होश भुला रखे है
इसलिए ये बंसी विचित्र है

पर बुल्लेशाह कई मिटने वाले संसार में ही मान सम्मान में आनंद खोजदे है
मिटने वाली मूर्तियों को ही अपने यार बनाये फिरते है
धर्म के नाम पे ब्योपार चलाये रखते है
पर इनसे अलग  केवल सत्ये के मार्ग पे चलने वालो की गवाही कयामत में खुद हजरत करेंगे
इसलिए ये बंसी बड़ी विचित्र है इसकी तान कोई बिरला ही समझ पाता  है

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment