"सतगुरू"
सास्त्र पुरान भेख पंथ खोजो , इन पैंडों में पाइए नाहीं ।
सतगुर न्यारा रहत सकल थें , कोई एक कुली में काँही ।।
(श्री मुख वाणी- किरन्तन ५/७)
शास्त्रों और पुराणों के विद्वानों, तरह-तरह की वेशभूषा धारण करने वाले महात्माओं और विभिन्न पन्थों में तुम भले ही खोजते रहो, लेकिन सदगुरु का स्वरूप नहीं मिलेगा । सदगुरु का स्वरूप इन सबसे अलग ही होता है ।क्योंकि गुरु का अर्थ होता है जो अँधेरे से उजाले की और ले जाये अर्थात जो मन से माया का अँधेराे दूर करके हृदये मे ज्ञान का प्रकाश कर दे अब ध्यान देने की बात यह है की क्या परमात्मा के अलावा कोई और ऐसा कर सकता है तो जवाब है नही क्योंकि परमात्मा ही केवल मायातीत है और जो माया से परे है या माया का स्वामी है केवल वही माया से निकल सकता है अन्य कोई नही और ऐसे केवल परमात्म ही हो सकते है ,क्योंकि माया के गुरु जिनको भगवत पराप्ति नही हुई है वो तो आपको अन्धेरे मे ही भटका सकते है ये वैसा ही है की जैसे कोई अंधा अंधे को मार्ग दिखा रहा हो या कोइ मगर पे बैठ कर नदी पार कर रहा हो .. आजकल ऐसे हजारो गुरु हैं जो केवल अपनी भक्ती करवा कर जीव को और खुद को नरक मे डाल रहे है और जीव को परमात्म से विमुख कर रहे है ..तो सतगुरू कोन है
सतगुरू केवल परमात्मा है कयोंकी सत केवल परमातमा है उनके अलावा कया कोइ सतगुरू है इसलिय काहा गया है "सतगुरू मेरे श्याम जी "पर परमात्मा सवंय नही आ सकते कयोंकी उनके सत्य या चित या आनंद की एक बूंद भी एक बूंद भी आजाये तो आन्नत ब्रह्ममान्डो का लय हो ताये ..तो सतगुरू मिले कैसे ,ऐसी कोइ आत्मा अर्थात जिसने परमात्मा को आत्मसात कर लिया हो जिसके ह्रदय मे परमात्मा का वास हो गया हो और उसका आभास उसे निरंतर हो ऐसे आत्मा ह्रदय वाले जीव के माध्यम से परमात्मा अन्य जीवों का कल्याण करते हैं पर इसका अर्थ ये कदापि नही की उस शरीर को सतगुरू की उपाधी दी जाये सतगुरू केवल और केवल परमात्मा हैं जो आतमाओं के ह्रदय से जीवों का कल्याण करतें है ऐसी आत्मा के संपर्क मे परमात्मा का और सत्य ग्यान का आभास यवंम से ही होने लगता है ..और ऐसे जीव जीनके ह्रदय से परमात्मा सतगुरू की लीला करते हैं वो जीव आडंबर रहीत होते है वो कोइ विषेश वेशभूषा या बाहरी आवरण नही रखते केवल सत्य मार्ग पर चलने वाले ही उनको खोज सकते हैं इनको पाना बेहद दुर्लभ है कयोंकी..
वास्तविक सदगुरु तो इस कलयुग में कहीं कोइ एक ही होगा ...जिसे मिल जाये उसे परमात्मा मिल जाते हैं..
खोज बड़ी संसार रे तुम खोजो रे साधो, खोज बड़ी संसार ।
खोजत खोजत सतगुर पाइए, सतगुर संग करतार ।।
शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम्।
अतः प्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञात्तत्त्वमात्मनः।।
(विवेक चूड़ामणि—६२)
शब्द जाल (धार्मिक ग्रन्थ) तो चित्त को भटकाने वाला एक महान् बन है, इस लिए किन्हीं तत्त्व ज्ञानी महापुरुष से यत्न पूर्वक ‘आत्मतत्त्वम्’ को जानना चाहिए |
प्रणाम जी
सास्त्र पुरान भेख पंथ खोजो , इन पैंडों में पाइए नाहीं ।
सतगुर न्यारा रहत सकल थें , कोई एक कुली में काँही ।।
(श्री मुख वाणी- किरन्तन ५/७)
शास्त्रों और पुराणों के विद्वानों, तरह-तरह की वेशभूषा धारण करने वाले महात्माओं और विभिन्न पन्थों में तुम भले ही खोजते रहो, लेकिन सदगुरु का स्वरूप नहीं मिलेगा । सदगुरु का स्वरूप इन सबसे अलग ही होता है ।क्योंकि गुरु का अर्थ होता है जो अँधेरे से उजाले की और ले जाये अर्थात जो मन से माया का अँधेराे दूर करके हृदये मे ज्ञान का प्रकाश कर दे अब ध्यान देने की बात यह है की क्या परमात्मा के अलावा कोई और ऐसा कर सकता है तो जवाब है नही क्योंकि परमात्मा ही केवल मायातीत है और जो माया से परे है या माया का स्वामी है केवल वही माया से निकल सकता है अन्य कोई नही और ऐसे केवल परमात्म ही हो सकते है ,क्योंकि माया के गुरु जिनको भगवत पराप्ति नही हुई है वो तो आपको अन्धेरे मे ही भटका सकते है ये वैसा ही है की जैसे कोई अंधा अंधे को मार्ग दिखा रहा हो या कोइ मगर पे बैठ कर नदी पार कर रहा हो .. आजकल ऐसे हजारो गुरु हैं जो केवल अपनी भक्ती करवा कर जीव को और खुद को नरक मे डाल रहे है और जीव को परमात्म से विमुख कर रहे है ..तो सतगुरू कोन है
सतगुरू केवल परमात्मा है कयोंकी सत केवल परमातमा है उनके अलावा कया कोइ सतगुरू है इसलिय काहा गया है "सतगुरू मेरे श्याम जी "पर परमात्मा सवंय नही आ सकते कयोंकी उनके सत्य या चित या आनंद की एक बूंद भी एक बूंद भी आजाये तो आन्नत ब्रह्ममान्डो का लय हो ताये ..तो सतगुरू मिले कैसे ,ऐसी कोइ आत्मा अर्थात जिसने परमात्मा को आत्मसात कर लिया हो जिसके ह्रदय मे परमात्मा का वास हो गया हो और उसका आभास उसे निरंतर हो ऐसे आत्मा ह्रदय वाले जीव के माध्यम से परमात्मा अन्य जीवों का कल्याण करते हैं पर इसका अर्थ ये कदापि नही की उस शरीर को सतगुरू की उपाधी दी जाये सतगुरू केवल और केवल परमात्मा हैं जो आतमाओं के ह्रदय से जीवों का कल्याण करतें है ऐसी आत्मा के संपर्क मे परमात्मा का और सत्य ग्यान का आभास यवंम से ही होने लगता है ..और ऐसे जीव जीनके ह्रदय से परमात्मा सतगुरू की लीला करते हैं वो जीव आडंबर रहीत होते है वो कोइ विषेश वेशभूषा या बाहरी आवरण नही रखते केवल सत्य मार्ग पर चलने वाले ही उनको खोज सकते हैं इनको पाना बेहद दुर्लभ है कयोंकी..
वास्तविक सदगुरु तो इस कलयुग में कहीं कोइ एक ही होगा ...जिसे मिल जाये उसे परमात्मा मिल जाते हैं..
खोज बड़ी संसार रे तुम खोजो रे साधो, खोज बड़ी संसार ।
खोजत खोजत सतगुर पाइए, सतगुर संग करतार ।।
शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम्।
अतः प्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञात्तत्त्वमात्मनः।।
(विवेक चूड़ामणि—६२)
शब्द जाल (धार्मिक ग्रन्थ) तो चित्त को भटकाने वाला एक महान् बन है, इस लिए किन्हीं तत्त्व ज्ञानी महापुरुष से यत्न पूर्वक ‘आत्मतत्त्वम्’ को जानना चाहिए |
प्रणाम जी
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