खोजी खोजें बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप।
सत सुपने को पारथें पेखे, पर सुपना न देखे साख्यात ।।
हे साधुजन ! इस बिन्दुरूपी झूठी मायामें विराट शक्तिशाली सिन्धुरूपी (अन्नत)परमात्मा समाया हुआ प्रतीत होता है. सत रज और तम इन तीनों गुणोंके अधिष्ठाता देवता-ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी परमात्माको खोजते-खोजते चकित हो गए हैं तथापि वे अलख परमात्मा दृष्टिगोचर नहीं हुए.
वेद भी परब्रह्मकी खोज करनेके उपरान्त उसे अगम्य (पहुँचसे परे) कहकर 'नेति नेति' (अन्त नहीं, अन्त नहीं) कहते हुए उलटे पीछे लौट गये. यह बिन्दुरूपी माया कहाँसे उत्पन्न हुई है, इसकी जानकारी न होनेसे उसका नाम निगम पडा.
इस असत्य मण्डल (नश्वर ब्रह्माण्ड अर्थात् भवसागर) में सभी लोग अपना मार्ग भूल गए हैं. अखण्ड अविनाशी परमात्माकी बात कोई नहीं करता. यह संसार स्वप्नका खेल है और सभी लोग अज्ञाानकी निद्रामें यहाँ विचरण कर रहे हैं, स्वयं जागृत होकर परमात्माके विषयमें किसीने भी मार्गदर्शन नहीं किया.
यह विराट ब्रह्माण्ड स्वप्नका बना हुआ है और इसकी समग्र सृष्टि भी स्वप्नकी ही है. इसलिए असत्यके विस्तारसे सत्य ढक गया है. मायावी जीव स्वयं स्वप्नके होनेके कारण सत्य परमात्माको कैसे देख सकते ? इस प्रकार उन्हें परम तत्त्व भी नहीं मिल सका.
परमात्माको ढूँढ.नेवाले लोग इस विश्वमें पिण्ड-शरीरमें अथवा ब्रह्माण्ड (बाहर) में परमात्माको ढूँढते हैं, परन्तु स्वयं परमात्मा तो आत्म स्वरूपसे अन्तरमें विराजमान हैं. ..यह बहोत गहन विषय है इस पर आत्मअध्यन होना चाहिय..
प्रणाम जी
सत सुपने को पारथें पेखे, पर सुपना न देखे साख्यात ।।
हे साधुजन ! इस बिन्दुरूपी झूठी मायामें विराट शक्तिशाली सिन्धुरूपी (अन्नत)परमात्मा समाया हुआ प्रतीत होता है. सत रज और तम इन तीनों गुणोंके अधिष्ठाता देवता-ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी परमात्माको खोजते-खोजते चकित हो गए हैं तथापि वे अलख परमात्मा दृष्टिगोचर नहीं हुए.
वेद भी परब्रह्मकी खोज करनेके उपरान्त उसे अगम्य (पहुँचसे परे) कहकर 'नेति नेति' (अन्त नहीं, अन्त नहीं) कहते हुए उलटे पीछे लौट गये. यह बिन्दुरूपी माया कहाँसे उत्पन्न हुई है, इसकी जानकारी न होनेसे उसका नाम निगम पडा.
इस असत्य मण्डल (नश्वर ब्रह्माण्ड अर्थात् भवसागर) में सभी लोग अपना मार्ग भूल गए हैं. अखण्ड अविनाशी परमात्माकी बात कोई नहीं करता. यह संसार स्वप्नका खेल है और सभी लोग अज्ञाानकी निद्रामें यहाँ विचरण कर रहे हैं, स्वयं जागृत होकर परमात्माके विषयमें किसीने भी मार्गदर्शन नहीं किया.
यह विराट ब्रह्माण्ड स्वप्नका बना हुआ है और इसकी समग्र सृष्टि भी स्वप्नकी ही है. इसलिए असत्यके विस्तारसे सत्य ढक गया है. मायावी जीव स्वयं स्वप्नके होनेके कारण सत्य परमात्माको कैसे देख सकते ? इस प्रकार उन्हें परम तत्त्व भी नहीं मिल सका.
परमात्माको ढूँढ.नेवाले लोग इस विश्वमें पिण्ड-शरीरमें अथवा ब्रह्माण्ड (बाहर) में परमात्माको ढूँढते हैं, परन्तु स्वयं परमात्मा तो आत्म स्वरूपसे अन्तरमें विराजमान हैं. ..यह बहोत गहन विषय है इस पर आत्मअध्यन होना चाहिय..
प्रणाम जी
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