सुप्रभात जी
वास्तवमें संसार तो खेल ही होता है । अगर हम इसे खेल समझकर खेल खेलने लगोंगे तो हार जीतकी कामना नहीं रहेगी इसलिए हम हर्ष और शोकसे ऊपर उठ जायेंगे । इसे खेल समझ कर देखने लगेंगे तो हर्ष-शोकसे रहित होकर आनन्दका अनुभव होगा । ब्रह्मात्माएँ द्रष्टा होनेसे ममत्त्व और परत्त्वका आरोप किए बिना ही माया मोहमें अलिप्त होकर उनको यह खेल देखना चाहिए । मायाके झूठे जीव ही छल कपटका साहरा लेकर झूठी सम्पत्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते हैं । यदि वह सम्पत्ति या प्रतिष्ठा मिल भी जाय तो भी शरीर छूटने पर तो वह छूट ही जायेगा । इसलिए अपने परमात्माको छोड़ कर मायाके पीछे दौड़ना नहीं चाहिए । यद्यपि शरीर रहने तक माया का भी महत्त्व रहता है, सारे लौकिक कार्य लौकिक सम्पत्तिके द्वारा ही सम्पन्न होंगे तथापि मायाके साधनोंसे हमारी तृप्ति नहीं होगी । हमारी (आत्माकी)भूख मायाके आहारसे शान्त नहीं होगी इसके लिए तो जागृत होकर धाम और परमात्माका आश्रय लेना ही पडेगा । आत्मामें जागृति आते ही हमें अनुभव होगा कि हम परमात्मा से दूर नहीं अपितु उनके ही चरणोंमें रह कर मायाका खेल देख रहे हैं |for more click this link👇👇👇
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प्रणाम जी
वास्तवमें संसार तो खेल ही होता है । अगर हम इसे खेल समझकर खेल खेलने लगोंगे तो हार जीतकी कामना नहीं रहेगी इसलिए हम हर्ष और शोकसे ऊपर उठ जायेंगे । इसे खेल समझ कर देखने लगेंगे तो हर्ष-शोकसे रहित होकर आनन्दका अनुभव होगा । ब्रह्मात्माएँ द्रष्टा होनेसे ममत्त्व और परत्त्वका आरोप किए बिना ही माया मोहमें अलिप्त होकर उनको यह खेल देखना चाहिए । मायाके झूठे जीव ही छल कपटका साहरा लेकर झूठी सम्पत्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते हैं । यदि वह सम्पत्ति या प्रतिष्ठा मिल भी जाय तो भी शरीर छूटने पर तो वह छूट ही जायेगा । इसलिए अपने परमात्माको छोड़ कर मायाके पीछे दौड़ना नहीं चाहिए । यद्यपि शरीर रहने तक माया का भी महत्त्व रहता है, सारे लौकिक कार्य लौकिक सम्पत्तिके द्वारा ही सम्पन्न होंगे तथापि मायाके साधनोंसे हमारी तृप्ति नहीं होगी । हमारी (आत्माकी)भूख मायाके आहारसे शान्त नहीं होगी इसके लिए तो जागृत होकर धाम और परमात्माका आश्रय लेना ही पडेगा । आत्मामें जागृति आते ही हमें अनुभव होगा कि हम परमात्मा से दूर नहीं अपितु उनके ही चरणोंमें रह कर मायाका खेल देख रहे हैं |for more click this link👇👇👇
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