Sunday, November 22, 2015

सतगुरु कौन?

सतगुरु

ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वदा साक्षिरूपम्,
भावातीतं त्रिगुण रहितं सतगुरु तन्नमामि ॥
(स्कन्द्पुराणे गुरुगीतायम्)

अर्थ:= सच्चिदानंद ब्रह्म का आनन्द अन्ग, जिन्हे श्यामा कहा गया, वही सत्गुरु हैं। वे सर्वोत्तम ज्ञान एवं परम सुख के दाता हैं। वे द्वंद्व अर्थात माया, निरंजन निराकार एवं साकार ब्रह्मांड से परे हैं । आकाश जैसा उनका स्वभाव है, तत्वमसि में से असि पद ब्रह्म को कह गया है । तत पद ईश्वर से परे ब्रहं क लक्ष्य देते हैं। वह अचल रूप, सदा साक्षी स्वरूप हैं । स्वभाव अर्थात अध्यात्म अर्थात अक्षरब्रह्म से भी परे हैं । तीनों गुण सत-रज-तम के स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश से परे हैं । ऐसे सतगुरु को सप्रेम नमस्कार है ।

ऋग्वेद 10.49.1

केवल एक परमात्मा ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और  धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस  सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक परमात्मा को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए .

प्रणाम जी

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