Monday, November 30, 2015

कर्म रहस्य ......

कर्म रहस्य ......
सुप्रभात जी

प्रारब्ध कर्म---("प्रकर्षेण आरब्धः प्रारब्धः" अर्थात अच्छी तरह से फल देने के लिए जिसका आरंभ हो चुका है,वह प्रारब्ध है)
संचित मे से जो कर्म फल देने के लिए उन्मुख होते है ,उन कर्मो को प्रारब्ध कर्म कहते हैं।प्रारब्ध कर्मो का फल अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति के रूप मे सामने आता है;परंतु उन प्रारब्ध कर्मो को भोगने के लिए प्राणियों की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है-1स्वेच्छा पूर्वक,2.अनिच्छा पूर्वक ,3.परेच्छा पूर्वक ।
कर्मो का फल 'कर्म' नही होता,प्रत्युत 'परिस्थिति' होती है अर्थात प्रारब्ध कर्मो का फल परिस्थिति रूप से सामने आता है। प्रारब्ध कर्मो से मिलने वाले फल के दो भेद होते है-'प्राप्त फल' और 'अप्राप्त फल'। वर्तमान काल मे सबके सामने जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति आती है उसे 'प्राप्त फल' और जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति भविष्य मे आने वाली है वो "अप्राप्त फल' कही जाती है।
क्रियमाण कर्मो का जो फल -अंश संचित मे रहता है,वही प्रारब्ध बनकर अनुकूल,प्रतिकूल और मिश्रित परिस्थिति के रूप मे बनकर मनुष्य के सामने आता है।अतः जबतक संचित कर्म रहते है, तब तक प्रारब्ध बनता ही रहता है और प्रारब्ध परिस्थिति के रूप मे परिणत होता ही रहता हैं...

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment