तले सात तबक जिमीय के, या बीच ऊपर आसमान।
मूल बिरिख पात फूल फैलिया, सब हुआ इस्क सुभान।।
(श्री प्राणनाथ वाणी)
पृथ्वी के नीचे सात पाताल लोक हैं तथा ऊपर छः लोक आकाश में हैं। इस ब्रह्माण्ड रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तों और फूलों तक में धनी के प्रेम की सुगन्धि का अनुभव हो रहा है।
भावार्थ-
नीचे के सात पाताल लोक पृथ्वी से अलग नहीं हैं, बल्कि सात समुद्रों के निकटवर्ती वे स्थान जो हिमालय से नीचे आते हैं, पाताल लोक कहलाते हैं। जैसे- भीमसेन का विष खाने के कारण गंगा में डूबते-डूबते पाताल लोक में पहुँच जाना, सगर के पुत्रों द्वारा यज्ञ के घोड़े को खोजते-खोजते पाताल (कपिल मुनि के आश्रम) में पहुँचना। ये दोनों स्थान बंगाल की खाड़ी के पास के तटवर्ती भाग है। इसी प्रकार अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया भी पाताल लोकों के अन्तर्गत ही हैं।
ब्रह्माण्ड रूपी वृक्ष का फूल हिमालय है तथा फल सम्पूर्ण भारतवर्ष है। इसी में ज्ञान, भक्ति तथा वैराग्य के फूल खिलते हैं और मोक्ष रूपी फल प्राप्त होता है...
प्रणाम जी
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