सुख हक इस्क के, जिनको नाहीं सुमार।
सो देखन की ठौर इत है, जो रूह सों करो विचार।।
परमधाम में परमात्मा के प्रेम का अनन्त आनन्द है, किन्तु हे साथ जी ! यदि आप अपनी आत्मिक दृष्टि से विचार करें तो उन सुखों की पहचान इस ब्रह्माण्ड में ही होनी है।
परमधाम में प्रेम और आनन्द का विलास है, किन्तु इस ब्रह्माण्ड में तारतम ग्यान के प्रकाश में हम अपने ज्ञान चक्षुओं से इश्क और आनन्द के शुक्ष्म भेद को जान सकते हैं। ध्यान( चितवनि )द्वारा अष्ट प्रहर की लीला सहित सम्पूर्ण पक्षों का शुक्ष्म का भी शुक्ष्म भेद जान सकते हैं और उस अवस्था को जान सकते हैं जिसमें आत्मा और परात्म में भेद नहीं रह जाता...
प्रणाम जी
सो देखन की ठौर इत है, जो रूह सों करो विचार।।
परमधाम में परमात्मा के प्रेम का अनन्त आनन्द है, किन्तु हे साथ जी ! यदि आप अपनी आत्मिक दृष्टि से विचार करें तो उन सुखों की पहचान इस ब्रह्माण्ड में ही होनी है।
परमधाम में प्रेम और आनन्द का विलास है, किन्तु इस ब्रह्माण्ड में तारतम ग्यान के प्रकाश में हम अपने ज्ञान चक्षुओं से इश्क और आनन्द के शुक्ष्म भेद को जान सकते हैं। ध्यान( चितवनि )द्वारा अष्ट प्रहर की लीला सहित सम्पूर्ण पक्षों का शुक्ष्म का भी शुक्ष्म भेद जान सकते हैं और उस अवस्था को जान सकते हैं जिसमें आत्मा और परात्म में भेद नहीं रह जाता...
प्रणाम जी
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