करनी माफक कृपा..
सुप्रभात जी
(satsangwithparveen.blogspot.com)
(www.facebook.com/kevalsudhsatye)
तिलों और तेल में कुछ भेद नहीं तैसे ही परमात्मा और आत्मा में कुछ भेद नहीं । जो परमात्मा है वह आत्मा है और जो आत्मा है वह परमात्मा है, परमात्मा और आत्मा दोनों एक वस्तु के नाम हैं, जैसे विटप और पादप दोनों एक वृक्ष के नाम हैं । विचार से रहित को परमात्मा भी ज्ञान नहीं दे सकता । आत्मा के साक्षात्कार में मुख्य कारण अपने पुरुषार्थ से उपजा विचार है इसलिय तू मुख्य कारण का आश्रय कर ।
प्रथम पाँचों इन्द्रियों को वश कर और चित्त को आत्मविचार में लगा । जो कुछ किसी को प्राप्त होता है वह अपने पुरुषार्थ से होता है, पुरुषार्थ बिना नहीं होता । अपने पुरुषार्थ प्रयत्न से इन्द्रियरूपी पर्वत को लाँघे तो फिर संसारसमुन्द्र से तर जावे और तब परमपद की प्राप्ति हो । जो पुरुष के प्रयत्न बिना परमात्मा मुक्ति दें तो मृग पक्षियों को क्यों दर्शन देकर उद्धार नहीं करता जो गुरु अपने पुरुषार्थ बिना उद्धार करते तो अज्ञानी अविचारी ऊँट, बैल आदिक पशुओं को क्यों नहीं कर जाते । अपने मन के स्वस्थ किये बिना परम सिद्धता की प्राप्ति महात्मा पुरुष नहीं जानते । जिन्होंने वैराग्य और अभ्याससे इन्द्रियरूपी शत्रु वश किये हैं वे अपने आपसे उसको पाते हैं और किसी से नहीं पाते । हे जिवों! आपसे अपनी आराधना और अर्चना करो,आत्मत्तव की खोज करो, आपसे आपको देखो और आपसे आपमें (आत्मा )स्थित रहो । कयोंकी जो परमात्मा है वह आत्मा है और जो आत्मा है वह परमात्मा है..इसलिय अपने आप मे रह कर जो करनी करोगे तो अपने में से ही परमात्मा कृपा करेंगे...
वदन्तुशास्त्राणि यजन्तु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तुदेवता:।
आत्मैक्यबोधेनविना विमुक्तिर्न सिध्यतिब्रम्हशतान्तरेsपि।।
(विवेक चूड़ामणि--६)
‘भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करे, इष्टदेव का भजन करे, नाना शुभ कर्म करे अथवा इष्टदेव को भजे, तथापि जब तक आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध नहीं होगा, तब तक सौ ब्रम्हा के बीत जाने पर भी (अर्थात् सौ कल्प में भी) मुक्ति नहीं हो सकती।
तावत्तपो व्रतं तीर्थं जप होमार्चनादिकम्।
वेदशास्त्रागम कथा यावत्तत्त्वं न विन्दति।।
(गरुड़ पुराण १६/९८)
तब तक ही तप, व्रत, तीर्थाटन, जप, होम और देवपूजा आदि हैं तथा तब तक ही वेदशास्त्र और आगमों की कथा है जब तक कि तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होता;आत्मा परमात्मा का ग्यान( परमतत्त्वज्ञान ) प्राप्त होने पर ये सब कुछ भी नहीं रह जाते हैं..
पहले आप पहचानो रे साधो ..(वाणी)
प्रणाम जी
सुप्रभात जी
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तिलों और तेल में कुछ भेद नहीं तैसे ही परमात्मा और आत्मा में कुछ भेद नहीं । जो परमात्मा है वह आत्मा है और जो आत्मा है वह परमात्मा है, परमात्मा और आत्मा दोनों एक वस्तु के नाम हैं, जैसे विटप और पादप दोनों एक वृक्ष के नाम हैं । विचार से रहित को परमात्मा भी ज्ञान नहीं दे सकता । आत्मा के साक्षात्कार में मुख्य कारण अपने पुरुषार्थ से उपजा विचार है इसलिय तू मुख्य कारण का आश्रय कर ।
प्रथम पाँचों इन्द्रियों को वश कर और चित्त को आत्मविचार में लगा । जो कुछ किसी को प्राप्त होता है वह अपने पुरुषार्थ से होता है, पुरुषार्थ बिना नहीं होता । अपने पुरुषार्थ प्रयत्न से इन्द्रियरूपी पर्वत को लाँघे तो फिर संसारसमुन्द्र से तर जावे और तब परमपद की प्राप्ति हो । जो पुरुष के प्रयत्न बिना परमात्मा मुक्ति दें तो मृग पक्षियों को क्यों दर्शन देकर उद्धार नहीं करता जो गुरु अपने पुरुषार्थ बिना उद्धार करते तो अज्ञानी अविचारी ऊँट, बैल आदिक पशुओं को क्यों नहीं कर जाते । अपने मन के स्वस्थ किये बिना परम सिद्धता की प्राप्ति महात्मा पुरुष नहीं जानते । जिन्होंने वैराग्य और अभ्याससे इन्द्रियरूपी शत्रु वश किये हैं वे अपने आपसे उसको पाते हैं और किसी से नहीं पाते । हे जिवों! आपसे अपनी आराधना और अर्चना करो,आत्मत्तव की खोज करो, आपसे आपको देखो और आपसे आपमें (आत्मा )स्थित रहो । कयोंकी जो परमात्मा है वह आत्मा है और जो आत्मा है वह परमात्मा है..इसलिय अपने आप मे रह कर जो करनी करोगे तो अपने में से ही परमात्मा कृपा करेंगे...
वदन्तुशास्त्राणि यजन्तु देवान् कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तुदेवता:।
आत्मैक्यबोधेनविना विमुक्तिर्न सिध्यतिब्रम्हशतान्तरेsपि।।
(विवेक चूड़ामणि--६)
‘भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करे, इष्टदेव का भजन करे, नाना शुभ कर्म करे अथवा इष्टदेव को भजे, तथापि जब तक आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध नहीं होगा, तब तक सौ ब्रम्हा के बीत जाने पर भी (अर्थात् सौ कल्प में भी) मुक्ति नहीं हो सकती।
तावत्तपो व्रतं तीर्थं जप होमार्चनादिकम्।
वेदशास्त्रागम कथा यावत्तत्त्वं न विन्दति।।
(गरुड़ पुराण १६/९८)
तब तक ही तप, व्रत, तीर्थाटन, जप, होम और देवपूजा आदि हैं तथा तब तक ही वेदशास्त्र और आगमों की कथा है जब तक कि तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होता;आत्मा परमात्मा का ग्यान( परमतत्त्वज्ञान ) प्राप्त होने पर ये सब कुछ भी नहीं रह जाते हैं..
पहले आप पहचानो रे साधो ..(वाणी)
प्रणाम जी
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