Friday, November 27, 2015

इच्छाऐं (जाल)

सुप्रभात जी

वर्तमान जन्म का कारण पूर्व जीवन की वासनायें (इच्छाऐं )हैं और उन वासनाओं का कारण उस समय हमारे द्वारा किये गये सकाम कर्म थे । इसी प्रकार इस जीवन में किये गये सकाम कर्म वासना बनकर हमारे अगले जीवन का रूप निर्धारित करते हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में पुनर्जन्म की निन्दा की है और उसे दुःखालय कहा है -
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।।८-१५।।

परम सिद्धि को प्राप्त हुये महात्माजन मुझे प्राप्त कर अनित्य दुःख के आलय पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते ।

मनुष्य सकाम कर्म सुखों की आशा से करता है, किन्तु उन्हीं के कारण वह दुःखों में पड़ता है । सकाम कर्मों के फलस्वरूप ही 'दुःखालयम् अशाश्वतम्' रूपी पुनर्जन्म प्राप्त होता है । प्रत्येक शरीर में जन्म-मृत्यु, जरा व रोग लगते हैं । ये विकार नये-नये दुखों के श्रोत हैं । सभी दुःखों के मूल में सकाम कर्मों का भण्डार ही विद्यमान है ।
इसलिय ब्रह्मग्यान के माध्यम से परमात्मा का सत्य स्वरूप जान कर उनको ह्रदय में धारण करके गहनतम प्रेमलक्षणा भाव दूारा एकमात्र उन्ही को लक्षय मानकर सबके प्रती सेवा भाव व करता परमात्मा को जान कर बचा हुआ जीवन व्यतीत करो तो धोर दुखो से मुक्त होकर परमलक्षय पा लोगे..
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प्रणाम जी

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