सुप्रभात जी
वर्तमान जन्म का कारण पूर्व जीवन की वासनायें (इच्छाऐं )हैं और उन वासनाओं का कारण उस समय हमारे द्वारा किये गये सकाम कर्म थे । इसी प्रकार इस जीवन में किये गये सकाम कर्म वासना बनकर हमारे अगले जीवन का रूप निर्धारित करते हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में पुनर्जन्म की निन्दा की है और उसे दुःखालय कहा है -
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।।८-१५।।
परम सिद्धि को प्राप्त हुये महात्माजन मुझे प्राप्त कर अनित्य दुःख के आलय पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते ।
मनुष्य सकाम कर्म सुखों की आशा से करता है, किन्तु उन्हीं के कारण वह दुःखों में पड़ता है । सकाम कर्मों के फलस्वरूप ही 'दुःखालयम् अशाश्वतम्' रूपी पुनर्जन्म प्राप्त होता है । प्रत्येक शरीर में जन्म-मृत्यु, जरा व रोग लगते हैं । ये विकार नये-नये दुखों के श्रोत हैं । सभी दुःखों के मूल में सकाम कर्मों का भण्डार ही विद्यमान है ।
इसलिय ब्रह्मग्यान के माध्यम से परमात्मा का सत्य स्वरूप जान कर उनको ह्रदय में धारण करके गहनतम प्रेमलक्षणा भाव दूारा एकमात्र उन्ही को लक्षय मानकर सबके प्रती सेवा भाव व करता परमात्मा को जान कर बचा हुआ जीवन व्यतीत करो तो धोर दुखो से मुक्त होकर परमलक्षय पा लोगे..
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प्रणाम जी
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नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।।८-१५।।
परम सिद्धि को प्राप्त हुये महात्माजन मुझे प्राप्त कर अनित्य दुःख के आलय पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते ।
मनुष्य सकाम कर्म सुखों की आशा से करता है, किन्तु उन्हीं के कारण वह दुःखों में पड़ता है । सकाम कर्मों के फलस्वरूप ही 'दुःखालयम् अशाश्वतम्' रूपी पुनर्जन्म प्राप्त होता है । प्रत्येक शरीर में जन्म-मृत्यु, जरा व रोग लगते हैं । ये विकार नये-नये दुखों के श्रोत हैं । सभी दुःखों के मूल में सकाम कर्मों का भण्डार ही विद्यमान है ।
इसलिय ब्रह्मग्यान के माध्यम से परमात्मा का सत्य स्वरूप जान कर उनको ह्रदय में धारण करके गहनतम प्रेमलक्षणा भाव दूारा एकमात्र उन्ही को लक्षय मानकर सबके प्रती सेवा भाव व करता परमात्मा को जान कर बचा हुआ जीवन व्यतीत करो तो धोर दुखो से मुक्त होकर परमलक्षय पा लोगे..
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