अधिकतर लोग यह समझते है की शास्त्र अध्ययन ,सत्संग आदि से आत्म ज्ञान की प्राप्ति होती है .
शास्त्रों के अनुसार पहले सत्य का श्रवण करना चाहिए ,शास्त्र अध्ययन ,सत्संग करना चाहिए .
फिर उसका मनन करना चाहिए ताकि संशय की निवृति हो एवं बौद्धिक रूप से तत्व की समझ हो ,स्पष्टता हो .
किन्तु इतनी सी बात से जीवन में परिवर्तन नहीं आता है ,मोक्ष नहीं होता है ,मन से मुक्ति नहीं होती है .
इसीलिए शास्त्र आगे कहते है कि श्रवण मनन पर्याप्त नहीं है ,आपको इसके आगे ध्यान [निदिध्यासन ] भी करना होगा ,अन्यथा
आत्म साक्षात्कार या मुक्ति नहीं होगी .शास्त्र का कहना है कि ध्यान -समाधी के बिना मुक्ति या साक्षात्कार संभव नहीं है.
अतः साधक को श्रवण मनन से संतुष्ट नहीं होना चाहिए ,साथ में ध्यान भी करना चाहिए .
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