सुप्रभात जी
केवल अच्छे कर्मो के द्वारा ही जीवन का कल्याण संभव नहीं है। एक बार प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण बैठे थे। अचानक प्रभु श्रीराम हंस पडे। लक्ष्मण आश्चर्यचकित प्रभु श्रीराम को देखने लगे। लक्ष्मण ने पूछा, भइया ऐसी क्या बात हुई कि आप एकाएक हंस पडे। प्रभु श्रीराम ने कहा कि सामने वह कीडा वृक्ष पर चढने का प्रयास कर रहा है, परंतु बार-बार नीचे गिर जाता है। लक्ष्मण ने पूछा, प्रभु इसमें हंसने वाली बात क्या हुई, कृपया मुझे भी बताइए। तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि लक्ष्मण जिस कीडे को तुम देख रहे हो इसमें जो चेतन शक्ति है अर्थात यह जीवात्मा, अठारह बार स्वर्ग के राजा इंद्र की गद्दी पर बैठ चुका है। इसके बाद भी यह चौरासी लाख योनियों में भटक रहा है। जब मानव रूप में जन्म मिला, अच्छे कर्म किए, अश्वमेघ यज्ञ किए, स्वर्ग के राजा इंद्र की गद्दी मिल गई। सुख ऐश्वर्य भोगा। इसके बाद फिर चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव तन, फिर इंद्र की गद्दी और इसके बाद अब पुन: चौरासी लाख योनियों में ही भटक रहा है। यहां हमें यह संकेत मिलता है कि केवल अच्छे कर्मो से ही कल्याण संभव नहीं है।
जब अपने अंदर के चेतन परमात्मा मे स्थित हो जाओगे तब करने कराने वाले परमातमा हो जायेंगे तब तुम कर्म बन्धन से मुक्त होकर परमात्मा को पराप्त हो जाओगे ..यही आनंद पराप्ति हमारा परम लक्षय है...
अष्टावक्र कहते हैं - तुम्हारा किसी से भी संयोग नहीं है, तुम शुद्ध हो, तुम क्या त्यागना चाहते हो, इस (अवास्तविक) सम्मिलन को समाप्त कर के ब्रह्म से योग (एकरूपता) को प्राप्त करो॥
प्रणाम जी
केवल अच्छे कर्मो के द्वारा ही जीवन का कल्याण संभव नहीं है। एक बार प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण बैठे थे। अचानक प्रभु श्रीराम हंस पडे। लक्ष्मण आश्चर्यचकित प्रभु श्रीराम को देखने लगे। लक्ष्मण ने पूछा, भइया ऐसी क्या बात हुई कि आप एकाएक हंस पडे। प्रभु श्रीराम ने कहा कि सामने वह कीडा वृक्ष पर चढने का प्रयास कर रहा है, परंतु बार-बार नीचे गिर जाता है। लक्ष्मण ने पूछा, प्रभु इसमें हंसने वाली बात क्या हुई, कृपया मुझे भी बताइए। तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि लक्ष्मण जिस कीडे को तुम देख रहे हो इसमें जो चेतन शक्ति है अर्थात यह जीवात्मा, अठारह बार स्वर्ग के राजा इंद्र की गद्दी पर बैठ चुका है। इसके बाद भी यह चौरासी लाख योनियों में भटक रहा है। जब मानव रूप में जन्म मिला, अच्छे कर्म किए, अश्वमेघ यज्ञ किए, स्वर्ग के राजा इंद्र की गद्दी मिल गई। सुख ऐश्वर्य भोगा। इसके बाद फिर चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव तन, फिर इंद्र की गद्दी और इसके बाद अब पुन: चौरासी लाख योनियों में ही भटक रहा है। यहां हमें यह संकेत मिलता है कि केवल अच्छे कर्मो से ही कल्याण संभव नहीं है।
जब अपने अंदर के चेतन परमात्मा मे स्थित हो जाओगे तब करने कराने वाले परमातमा हो जायेंगे तब तुम कर्म बन्धन से मुक्त होकर परमात्मा को पराप्त हो जाओगे ..यही आनंद पराप्ति हमारा परम लक्षय है...
अष्टावक्र कहते हैं - तुम्हारा किसी से भी संयोग नहीं है, तुम शुद्ध हो, तुम क्या त्यागना चाहते हो, इस (अवास्तविक) सम्मिलन को समाप्त कर के ब्रह्म से योग (एकरूपता) को प्राप्त करो॥
प्रणाम जी
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