Monday, October 26, 2015

किसी भी अन्य स्थान पर नहीं पाया जा सकता।

सुप्रभात जी

आपने हमें स्वयं को दिखाया है अर्थात्‌ अपनी पहचान दी है( सर्वेत्तम ग्यान )। अब आपके अतिरिक्त अन्य कोई भी दूसरा ठिकाना (आधार) हमें दिखाई ही नहीं देता। आपने स्वयं को प्राणनली (शाहरग) से भी अधिक निकट बताया है। यही कारण है कि हमें अन्य कहीं भी दूर नहीं जाना पड़ा।
आत्मा के एकमात्र प्रियतम अक्षरातीत(परमात्मा) ही है। उनका स्थान अन्य कोई भी नहीं ले सकता। परमधाम के मूल सम्बन्ध से परमात्मा आत्माओं के धाम-हृदय में विराजमान होते हैं, जिन्हें प्राणनली से भी अधिक निकट कहकर व्यक्त किया जाता है। आत्मा के दिल के अतिरिक्त परमात्मा को किसी भी अन्य स्थान (मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि) में नहीं पाया जा सकता। वे तो हम सब के धाम हृदय में ही विराजमान हैं।

प्रणाम जी

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