Friday, October 23, 2015

इस संसार आडम्बर में मैं कौन हूँ ...

सुप्रभात जी

संसारसमुद्र से तरने के लिय शीघ्र ही विचार करूँ ।
Satsangwithparveen.blogspot.com
इस संसार आडम्बर में मैं कौन हूँ जो बोलता हूँ, देह और यह जगत् तो मैं नहीं, यह तो असत्य उपजा है और जड़रूप पवन से स्फुरणरूप होता है सो मैं कैसे होऊँ? यह देह भी मैं नहीं क्योंकि यह तो क्षण-क्षण में काल से लीन होता है और जड़ रूप है।
श्रवणरूपी जड़ भी मैं नहीं, क्योंकि जो शब्द सुनते हैं वह शून्य से उपजा है त्वचा इन्द्रिय भी मैं नहीं इसका क्षण-क्षण विनाश स्वभाव है । प्राप्त हुआ अथवा न हुआ, यह इष्ट है, यह अनिष्ट है, इन्द्रियाँ आप जड़ हैं पर इनके जानने वाला चैतन्य तत्त्व है और चैतन्य के प्रमाद से ये विषय उपलब्धहोते हैं । इससे न मैं त्वचा इन्द्रिय हूँ, और न स्पर्श विषय हूँ, यह जड़ात्मक है यह जो चच्चलरूपी तुच्छ जिह्वा इन्द्रिय है और जिसके अग्र में अल्प जल अणु स्थित है वही रस ग्रहण करता है, वह रस भी जीवसत्ता करके लब्धरूप होता है वो आप जड़ है,

इससे यह जड़रूप जिह्वा और रस मैं नहीं ये जो विनाशरूप नेत्र दृश्य के दर्शन में लीन हैं सो मैं नहीं और न मैं इनका विषयरूप हूँ, ये जड़ हैं । यह जो नासिका पृथ्वी का अंश है सो केवल जीव के आधार है यह आप जड़ है पर इसका जाननेवाला चैतन्य है, सो न मैं नासिका हूँ, न गन्ध हूँ, मैं अहं मम से और मन के मनन से रहित शान्तरूप हूँ और ये पञ्च इन्द्रियाँ मेरे में नहीं मैं शुद्ध चैतन्यरूप कलना कलंक से और चित्त से रहित चिन्मात्र और सबका प्रकाशक सबके भीतर बाहर व्यापक और निःसंकल्प निर्मल शान्तरूप हूँ । आश्चर्य है अब मुझको अपना स्वरूप स्मरण आता है । प्रकाशकरूप चैतन्य अनुभव अद्वैत मेरे अनुभव से स्थित है ।

इसलिय सवंयम की खोज करने से मूल तत्व का मार्ग मिलेगा..
पेहेले आप पेहेचानो रे साधो, पेहेले आप पेहेचानो ।
बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो।।

प्रणाम जी

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