अरस नाहीं सुमारमें, सो हक ल्याए माहें दिल मोमन।
बेसुमार ल्याए सुमार में, माहें आवने दिल रूहन।।
अरस नाही सुमार में ,
परमधाम का कोई पारावार नही है कहने को पचीस पक्ष है पर जरा खुद ही सोचिये की क्या अनंत ब्रह्म केवल पचीस पक्ष में ही सिमित है पर क्योंकि समझाने के लिए कुछ तो लिखना था इसलिए केवल शब्दों का प्रयोग किया गया जिसमे भाव छुपे है ..
परमधाम का तो एक एक कण भी अनंत है ..यहां एक छोटे से अनुभव के दूारा समझाने का प्रयास किया जा रहा है कृपया शुध्द रूप में ग्रहण करें ..जब आत्माएं परमधाम में किसी कण में दृष्टि डालती है तो वो कण आत्माओं से मोहित हो जाता है क्योंकि वहां परमात्मा के आलावा कुछ भी नही है वहां का कण कण परमात्मा है इसलिए वो कण आत्मवो पे मोहित हो जाता है और आत्माएं भी उस कण पे इतना मोहित हो जाती है की उनकी दृष्टि उसमे समने लगती है इस प्रकार दोनों अरस परस हो जाते है जिस से दोनों का आनंद प्रवाह निरंतर बढ़ने लगता है इसी प्रवाह में आतामांये उस कण से अनंत आंनद अनुभव करने लगतीं है जिसमे उन्हें अपने चारो और अनंत नक्काशिया और लताएँ अनुभव होने लगती है ये सभी चेतन है और इनसे मीठी मीठी ध्वनि निकल कर आत्मावों को इस प्रकार स्पर्श करती है की आत्माऔं के अंगो से भी वही ध्वनि निकने लगती है यह ध्वनी कुछ और नही बल्कि आत्मंवो का बढ़ता हुआ आनंद ही है जो उसी ध्वनी के रूप में आने लगता है दब ये दोनो ध्वनीयां परसपर मिलती हैं तो एक नये आनंद का निर्माण होता है जो पहले से कहीं अधिक होता है जिसको शब्दो में बयां नही किया जा सकता ...फिर यही आनंद की ध्वनि अनेक रंगो में प्रवर्तित होकर चारो तरफ अनेक रंगीन व अनंत मोहक छटायें बना देतीं है जिसमे आत्माये उड़ने लगतीं है वे अनुभव करती है की वे भी इन रंगो का एक हिस्सा है और ये रंग कोई और तत्त्व नही केवल और केवल अनद तत्त्व है इसी के रंग में वे खुद को बहता हुवा पातीं है इसके बाद भी बहोत आनंद की लीलाएं होती है (आत्मन्वो की आँखे उस कण से अनेक प्रकार से मीठी बातें भी करती हैं क्योंकि वहाँ बोलने के लिए किसी इंद्री की जरूरत नही होती आँखे बोल सकतीं हैं कान देख सकते हैं त्वचा सुन सकती हैं वह हर अंग पूर्ण हैं इसलिए आत्माएँ धाम में हर तरफ दृष्टि रखती हैं हर वस्तु उन्हें दृश्येमान रहती हैं हर चीज से वो बिना बोले भी बात कर लेतीं हैं ) जो अनंन्त है उनका वर्णन करूं तो ऐसे अनेक जीवन बीत जाएँ पर एक कण की व्याख्या संभव नही है ....इस प्रकार आत्माएं परमधाम के केवल एक कण से इतना आनंद प्राप्त करती है यह तो केवल एक कण है फिर आप अंदाज लगा सकते है की वो धाम अनंत है या सिमित
ऐसे परम धाम के आनंद अनुभव या ज्ञान परमात्मा ने इस संसार में भी आत्मंवो के हृदये में अंकित कर दिया है जिसका आनंद वे निरंतर लेती रहती हैं ,,इस प्रकार परमात्मा अनंत को सिमित में लेकर आय हैं अर्थात इस ब्रह्मांड में जो की सिमित है यहाँ परमधाम के अनंत भाव आत्मवो के हृदये में अंकित कर दिया है और वो भी इसलिए की परमात्मा उनके हृदये में आकर बैठ सके तभी तो आत्मांये परमात्मा को पहचान सकेंगी क्योंकी परमात्मा अनंत के भी अनंत है और जब आतमाऔं के हृदये में अनंत धाम की पहचान हो जाएगी तभी आत्मायें उस अनंत परमात्मा को पहचान सकेंगी ...
प्रणाम जी
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