हक सूरत नूर के पार है, तहां सबद न पोहोंचे बुध ।
चौदे तबक छाया मिने, इने नहीं सूर की सुध ।।
परमात्मा का चिन्मय (सच्चिदानन्दमय) स्वरूप तो अक्षर ब्रह्म से भी परे है. वहाँ न शब्द पहुँचता है और न ही बुद्धि पहुँचती है. ये चौदह लोक छायाके समान अज्ञानरूप अन्धकारमें हैं. इसलिए यहाँके प्राणियोंको परब्रह्म परमात्मा की सुधि नहीं होती है..
प्रणाम जी
चौदे तबक छाया मिने, इने नहीं सूर की सुध ।।
परमात्मा का चिन्मय (सच्चिदानन्दमय) स्वरूप तो अक्षर ब्रह्म से भी परे है. वहाँ न शब्द पहुँचता है और न ही बुद्धि पहुँचती है. ये चौदह लोक छायाके समान अज्ञानरूप अन्धकारमें हैं. इसलिए यहाँके प्राणियोंको परब्रह्म परमात्मा की सुधि नहीं होती है..
प्रणाम जी
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