Friday, October 16, 2015

सास्त्र ले चले सतगुरु सोई, वानी सकलको एक अरथ होई ।
सब स्यानों की एक मत पाई, पर अजान देखे रे जुदाई ।।

धर्मग्रन्थोंके प्रमाणभूत सिद्धान्तोंके अनुरूप चलने वाले ही सद्गुरु हो सकते हैं. सब धर्मग्रन्थोंकी वाणी समान अर्थ धारण करती है (अर्थात् एक ही पूर्णब्रह्म परमात्माकी ओर संकेत करती है). वास्तवमें सब ज्ञाानीजनोंका अभिप्राय भी एक है, किन्तु धर्मग्रन्थोंके सिद्धान्तोंको न समझने वाले अज्ञाानीजन उनमें भिन्नता देखते हैं.

प्रणाम जी

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