सुप्रभात जी
परमधाम की आत्माओं को चाहिए कि वे ब्रह्मवाणी के ज्ञान तथा परमात्मा के प्रेम से अपनी आत्मिक दृष्टि को खोलें। यदि वे ऐसा करके इस जगत की लीला को देखती हैं तो उन्हें यह विदित हो जायेगा कि यह सम्पूर्ण जीव सृष्टि उस खेल के कबूतर की तरह हैं, जिसका बाजीगर (अक्षर ब्रह्म) दूर बैठे हुए इस खेल को खेला रहा है।
इस अवस्था में ब्रह्मसृष्टि जीवों को अपना आदर्श नहीं मानेगी और उनके कर्मकाण्डों की नकल नहीं उतारेगी। परमात्मा की वाणी का ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् तो ब्रह्मसृष्टियां अपने धाम हृदय में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं बसाती।
प्रणाम जी
परमधाम की आत्माओं को चाहिए कि वे ब्रह्मवाणी के ज्ञान तथा परमात्मा के प्रेम से अपनी आत्मिक दृष्टि को खोलें। यदि वे ऐसा करके इस जगत की लीला को देखती हैं तो उन्हें यह विदित हो जायेगा कि यह सम्पूर्ण जीव सृष्टि उस खेल के कबूतर की तरह हैं, जिसका बाजीगर (अक्षर ब्रह्म) दूर बैठे हुए इस खेल को खेला रहा है।
इस अवस्था में ब्रह्मसृष्टि जीवों को अपना आदर्श नहीं मानेगी और उनके कर्मकाण्डों की नकल नहीं उतारेगी। परमात्मा की वाणी का ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् तो ब्रह्मसृष्टियां अपने धाम हृदय में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं बसाती।
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment