Saturday, October 24, 2015

बाजीगर

सुप्रभात जी

परमधाम की आत्माओं को चाहिए कि वे ब्रह्मवाणी के ज्ञान तथा परमात्मा के प्रेम से अपनी आत्मिक दृष्टि को खोलें। यदि वे ऐसा करके इस जगत की लीला को देखती हैं तो उन्हें यह विदित हो जायेगा कि यह सम्पूर्ण जीव सृष्टि उस खेल के कबूतर की तरह हैं, जिसका बाजीगर (अक्षर ब्रह्म) दूर बैठे हुए इस खेल को खेला रहा है।
इस अवस्था में ब्रह्मसृष्टि जीवों को अपना आदर्श नहीं मानेगी और उनके कर्मकाण्डों की नकल नहीं उतारेगी। परमात्मा की वाणी का ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् तो ब्रह्मसृष्टियां अपने धाम हृदय में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं बसाती।

प्रणाम जी

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