Friday, October 9, 2015

मुझे परम धाम नही मिलेगा क्या ?????

साथ जी बोहोत से लोग सवाल पूछते हैं की क्या परमधाम ब्रह्म आत्मंवो के लिए ही है ओरो के लिए नही ये एक बोहोत बड़ा और गहन  सवाल है इस के साथ एक सवाल और आता है की क्या मै ब्रह्म आत्मा हूँ अगर नही तो मुझे परम धाम नही मिलेगा क्या ?????
और ये शंका पैदा इसलिए हो गयी क्योंकि सब इसका जवाब  वही रटे रटाये देते है जिस कारण सभी जीव ब्रह्म से दुरी बना लेते है की परमधाम तो मिलेगा  नही फिर क्या फायदा उनके मनन में शंका हो जाती है की ब्रह्म अगर पक्षपात करता है तो केसा ब्रह्म ..और वो आनंद रूपी प्रेम के सागर उस परमात्मा से दुरी बना लेते है ...
साथ जी उस ब्रह्म की प्रेरणा से इसका समाधान करने का प्रयास किया जा रहा है अगर कोई त्रुटी होतो क्षमा प्रार्थी हूँ  .

तो साथ जी जीव जब निरंतर जागृत और आनंद अवस्था को पा  लेता है तो वो आत्मा बन जाता है जैसे रास में आज भी गोपियों के जीव जागृत अवस्था में निरंतर आनंद ले रहे है क्योंकि वो अखंड हो गये है क्योंकि वो  अक्षर ब्रह्म की नजर में आ गये थे इसलिए वो अखंड हो गये दुसरे शब्दों  में कहें तो याने वो आत्मा बन गये तो साथ जी इस कलयुग में तो ब्रह्मात्मयें  जगनी का आनंद उठा रही है ओर उनको ये आनंद देने वाले और कोई नही बल्कि स्वेम पुरंब्रह्म सत्च्दानंद परमात्मा है याने खुद आनंदस्वरूप  परमात्मा की नजर इस ब्रह्मांड पर है तो क्या ये जिव आत्मा नही बनेगे ये तो आत्मा बन चुके है इस विषये को थोडा और गहराई से समझने का प्रयास करते है जी गंगा जल किसी भी पानी में मिला दो तो वो शुद्ध कहा जायेगा याने वो गंगा जल जैसा ही बन जाता है ऐसे ही अग्नि में कोई भी चीज़ दाल दो तो वो अग्नि का ही रूप बन जाती है  वेसे है इस ब्रह्मांड पर परमात्मा की नजर  है जिस  से ये पूरा ब्रह्मांड आनंद स्वरुप हो जायेगा अर्थात सरे जीव आत्मा ही है क्योंकि सीधी सी बात है ब्रह्म  की नजर जिस जीव पर भी पड़ी तो वो जीव आत्मा हो गया और क्योंकि नजर डालने वाला ब्रह्म ही है इसलिए उनकी नजर भी ब्रह्म है जहाँ जाएगी वो भी ब्रह्म का अंश हो जायेगा इसलिए वो जीव भी ब्रह्म आत्मा है बस प्रयास यहीं करें की सभी जीव उस ब्रह्म में निरंतर नजर रखे जिस से उनका प्रेम आपमें जागृत हो जाये प्रेम जागृत होते ही उनकी छवि हृदये में आ जाएगी इसे ही परमात्मा का हृदये में आना कहते  है और ब्रह्म केवल ब्रह्म आत्मवो के हृदये में ही आते है अर्थात वो जिसके हृदये में आ जाएँ वो ही ब्रह्म आत्मा है और उसको निरंतर उनका आनंद मिलना प्रारम्भ हो जाता है इसलिए अपने को हमेशा ब्रह्म आत्मा ही समझे क्योंकि धारणा बड़ी चीज़ हैजिस चीज़ की भी करोगे उसी में समाधिस्त हो जावोगे ...और जब ब्रह्मआत्मा हो  तो धाम भी वही मिलेगा जो ब्रह्म आत्मवो के जीव को मिलेगा इसलिए मै ब्रह्म आत्मा हु के नही ये चिंता छोड़ के ब्रह्म का चिंतन करे ..
प्रणाम जी 

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